हरियाणा का अशोक स्तंभ, PM ने G-20 में जिक्र किया:तुगलक यमुनानगर से उखाड़ दिल्ली ले गया था, ग्रामीणों ने लड़ाई लड़ी, वापस लाए
हरियाणा का अशोक स्तंभ, PM ने G-20 में जिक्र किया:तुगलक यमुनानगर से उखाड़ दिल्ली ले गया था, ग्रामीणों ने लड़ाई लड़ी, वापस लाए
यमुनानगर जिले के गांव टोपरा में स्थापित अशोक चक्र।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G-20 सम्मेलन के उद्घाटन में जिस अशोक स्तंभ का जिक्र किया, उसे 2500 साल पहले हरियाणा के यमुनानगर जिले के गांव टोपरा में सम्राट अशोक ने स्थापित कराया था। इस बारे PM ने कहा था, "यहां से कुछ दूरी पर स्तंभ है, जिस पर प्राकृतिक भाषा में सम्राट अशोक का आखिरी अभिलेख है, जिसमें उन्होंने संपूर्ण विश्व को शांति का उपदेश दिया है। "
टोपरा से अशोक स्तंभ को फिरोजशाह तुगलक 14 वीं शताब्दी में यहां से उखाड़ कर दिल्ली ले गया था। 27 टन वजनी स्तंभ को यमुना नदी के रास्ते कोटला नई दिल्ली ले गया। यह वह वक्त था, जब तुगलक नए शहर का निर्माण कर रहा था। इस स्तंभ को तब मीनारें-ए-जरीन कहा जाता था। जिसका अर्थ है सोने का स्तंभ। तुगलक काल के इस्लामी पाठ में यह उदाहरण दिया गया है कि यह हरियाणा के सभी अशोक स्तंभों में सबसे चमकीला स्तंभ था।
यमुनानगर जिले के गांव टोपरा में स्थापित अशोक चक्र। रात को दूधिया रोशनी के बीच ये नजारा होता है।
तुगलक से यूं छीनी ग्रामीणों ने अपनी पहचान
बात दस साल पहले की है, गांव के इतिहास के बारे में द बुद्धिस्ट फोरम के अध्यक्ष सिद्धार्थ को जानकारी मिली। उन्होंने इस पर गहन शोध किया। जब पक्के तौर पर यह सुनिश्चित हो गया कि फिरोजशाह कोटला मैदान में लगा स्तंभ सम्राट अशोक ने गांव टोपरा में लगाया था, तब उन्होंने गांव की तत्कालीन महिला सरपंच रामकली पंजेटा से संपर्क किया।
महिला सरपंच को स्तंभ दिखाया गया, इसके इतिहास की पूरी जानकारी दी गई। तब गांव ने एक प्रस्ताव पास कर दिल्ली के स्तंभ को वापस अपने गांव में लाने की केंद्र सरकार से अपील की। यह पहला मौका था, जब गांव में इतने बड़े स्तर पर पहली बार अपनी पहचान को वापस लाने की आवाज एक साथ उठी।
राह आसान नहीं थी, क्योंकि रास्ते में बड़ी बाधाएं जो थी
स्तंभ वापसी की राह कतई आसान नहीं थी, लेकिन सिद्धार्थ और रामकली ने हार नहीं मानी। वह लगातार सरकार से पत्राचार करते रहे। उन्होंने तमाम साक्ष्य और तथ्य सरकार के सामने रखे। जिससे यह साबित हो कि यह उनका स्तंभ है। आखिरकार सरकार ने उनकी बात सुनी। ग्रामीणों को अशोक स्तंभ का रेप्लिका स्थापित करने की इजाजत मिल गई।
यमुनागनर में अशोक एडिक्ट्स पार्क।
यह पहला टर्निंग पॉइंट था, जब फिरोजशाह कोटला मैदान में लगा स्तंभ चर्चा में आया। इस पर बातचीत होना शुरू हुई। तत्कालीन सरपंच ने स्तंभ स्थापित करने के लिए पंचायती जमीन से 27 एकड़ जमीन इस काम के लिए रिजर्व कर दी।
यूं होती गई मुश्किल आसान
अशोक एडिक्ट्स पार्क के संस्थापक सिद्धार्थ गौरी ने बताया कि जमीन की घोषणा होने के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सम्राट अशोक को समर्पित 'अशोक शिलालेख पार्क' स्थापित करने की घोषणा की, जिसका कोड नंबर 10072 है। एनआरआई डॉक्टर सत्यदीप गोरी ने ग्रामीणों को फंड दिया, इससे पार्क में
30 फीट व्यास और 6 टन वजन का 24 तीलियों वाला सुनहरे रंग का धर्म चक्र स्थापित किया गया है, जिसके ऊपर 61 फीट की छत्रावली है। इसे 'लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड' में सूचीबद्ध किया गया है। पार्क के रखरखाव और भविष्य के विकास के लिए ग्राम पंचायत टोपरा कलां द्वारा 'अशोक पार्क डेवलपमेंट ट्रस्ट' का गठन किया गया |
भविष्य की योजना
सिद्धार्थ गौरी ने बताया कि हमारी कोशिश है कि यहां लकड़ी की उस गाड़ी का मॉडल भी स्थापित किया जाए, जिसके माध्यम से तुगलक स्तंभ को यमुना नदी तक लेकर गया था। इसके साथ ही यहां 1500 साल बाद स्तूप बनाने का प्रस्ताव है। इस पर भी काम चल रहा है।
टोपरा गांव का इतिहास
टोपरा कलां फारसी शब्द है, जहां टोपरा शब्द टोपी का बिगड़ा हुआ रूप है, जिसका अर्थ है गोलार्ध और कलां का अर्थ है क्षेत्र। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में कई स्थान, जहां स्तूप पाए गए हैं, उन्हें टोपे शब्द से संबोधित किया जाता है। 18वीं सदी की शुरुआत में जब भारतीय पुरातत्व के जनक अलेक्जेंडर कनिंघम ने टोपरा कलां गांव का दौरा किया तो उन्होंने पाया कि टीले के ऊपर लगभग 250 घर बनाए गए थे और ज्यादातर प्राचीन बड़े स्लैब जैसे ईंटों का इस्तेमाल किया गया था।
उन्होंने देखा कि ये ईंटें ईसाई-पूर्व युग की थी और साथ ही उन्होंने गांव के पूर्व में एक बड़े पानी के तालाब के पास ईंटों के दो टीले भी देखे। एक टीले में ईंटों जैसी बड़ी स्लैब थी और उसके पास के दूसरे टीले में छोटी ईंटें थीं। वहां भट्ठा था जो छोटी ईंटें बनाने के लिए फिर से पुरानी ईंटों का उपयोग कर रहा था।
अब इन हीरों के बारे में जानिए...
1. पूर्व सरपंच रामकली- इनके कार्यकाल में प्रोजेक्ट शुरू हुआ
तत्कालीन सरपंच रामकली पंजेटा जिनके कार्यकाल में अशोका एडिक्ट पार्क प्रोजेक्ट शुरू हुआ। वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। फिर भी उन्होंने अपने गांव के इतिहास को समझा। गांव की पहचान को वापस लाने के लिए वह हर चुनौती का मुकाबला करने के लिए तैयार थी। उन्होंने सिद्धार्थ गौरी के साथ मिल कर अधिकारियों व नेताओं के सामने अपनी बात रखी। साबित किया कि उनके गांव का सम्राट अशोक से रिश्ता रहा है। पीएम ने जब अपने भाषण में अशोक स्तंभ का जिक्र किया तो रामकली ने बताया कि यह उनके लिए ऐतिहासिक दिन है। जिस पहचान के लिए हमने अपने छोटे से गांव से शुरुआत की थी, आज उसका नाम पीएम ने विश्व नेताओं के सामने लिया है। इससे बड़ा उनके लिए और क्या हो सकता है?
रामकली के बाद गांव के सरपंच बने मनीष नेहरा ने पार्क बनाने के लिए लेकर यहां देश का सबसे बड़ा चक्र स्थापित करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि उनके गांव को अपनी पहचान मिली है। यह दिन पूरे गांव के लिए गर्व का पल है। हम सोच भी नहीं सकते थे कि एक दिन प्रधानमंत्री उनके गांव के स्तंभ के बारे में बात करेंगे, ऐसा लग रहा है कि यह एक सपना है, जो हकीकत बन गया है।
3. NRI सत्यदीप गौरी-चक्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा
यमुनानगर के निवासी और अब वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टर की प्रैक्टिस कर रहे सत्यदीप गौरी को जब गांव के इतिहास के बारे में पता चला तो उन्होंने स्वयं आगे आकर पार्क में देश का सबसे बड़ा चक्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। पंचायत ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस तरह से गांव में देश का सबसे बड़ा चक्र लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी इसका नाम दर्ज है, स्थापित किया गया। सत्यदीप गोरी ने फोन पर बताया कि निश्चित ही यह उनके लिए भी खुशी का पल है। वह ऑस्ट्रेलिया में आज इस बात पर गर्व कर रहे हैं कि टोपरा के लिए वह कुछ कर पाए।
4. द बुद्धिस्ट फोरम के अध्यक्ष सिद्धार्थ गौरी
सिद्धार्थ गोरी पहले वह व्यक्ति है, जिन्होंने इस दिशा में पहल की थी। सिद्धार्थ गौरी ने बताया कि इतिहास 12वीं शताब्दी ई.पू. तब के राजा विशाला देव चौहान ने टोपरा कलां का दौरा किया और सरस्वती नदी की पूजा की। इस बात का जिक्र कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक एनल ऑफ राजस्थान में किया है। उन्होंने यह भी बताया कि विशाल देव चौहान ने स्तंभ पर अपना आलेख भी अंकित कराया था। सिद्धार्थ ने इस बात पर भी जोर दिया कि टोपरा का स्तंभ फोर लायन कैपिटल है, सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था, सम्राट अशोक ने वहां जो पिल्लर स्थापित किया, वैसा ही पिलर टोपरा में स्थापित किया था।
हम यह कह सकते हैं कि टोपरा में भी भगवान बुद्ध के चरण पड़े हैं। उन्होंने कहा कि जब से टोपरा में अशोक चक्र की स्थापना हुई, तब से देश और विदेश में गांव को नई पहचान मिली है। इसलिए अब वक्त आ गया कि बिहार व यूपी की तरह हम भी विदेशी पर्यटकों को हरियाणा की ओर आकर्षित कर सकते हैं। जिससे यहां न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रूरल टूरिज्म को भी पहचान मिलेगी।
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