आरएसएस ने अंबेडकर को बताया 'अपना', 85 साल पुराने किस्से को अब मिल रही हवा
नई दिल्ली : भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम भारतीय समाज और राजनीति में एक सशक्त आवाज के तौर पर लिया जाता है. लेकिन अब एक नया दावा सामने आया है, जो उनके और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच के रिश्ते पर रोशनी डालता है.
दावा किया गया है कि 85 साल पहले महाराष्ट्र के एक शाखा में डॉ. अंबेडकर ने संघ के स्वयंसेवकों से मुलाकात की थी और इस दौरान उन्होंने आरएसएस के प्रति अपना समर्थन का इजहार किया था. यह दावा आरएसएस के मीडिया केंद्र, विश्व संवाद केंद्र (वीएसके) की ओर से किया गया है, जिसमें कहा गया कि अंबेडकर ने संघ के प्रति अपनेपन की भावना को महसूस किया, हालांकि कुछ मुद्दों पर उनके मतभेद थे.
वीएसके के विदर्भ प्रांत ने 2 जनवरी 2025 को एक बयान जारी कर इस ऐतिहासिक मुलाकात और उसके बाद के तथ्यों का खुलासा किया. बयान में कहा गया कि डॉ. अंबेडकर ने 2 जनवरी 1940 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कराड में आरएसएस की एक शाखा का दौरा किया था. इस दौरान, अंबेडकर ने संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित किया और कहा, "हालांकि, कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन मैं संघ को अपनेपन की भावना से देखता हूं."
वीएसके ने इस बयान में आगे कहा कि डॉ. अंबेडकर ने संघ के बारे में जो विचार व्यक्त किए थे, वे इस बात को दर्शाते हैं कि उन्हें आरएसएस के मकसदों और उसकी कार्यप्रणाली के बारे में साफ जानकारी थी. बयान में यह भी जिक्र किया गया कि डॉ. अंबेडकर को यह पता था कि आरएसएस एक अखिल भारतीय संगठन है, जो हिंदुओं को एकजुट करने का काम करता है. हालांकि, डॉ. अंबेडकर आरएसएस की विकास गति से संतुष्ट नहीं थे और उनके मन में संघ के भविष्य को लेकर कुछ संदेह थे.
आरएसएस पर दलित विरोधी होने के आरोपों की चर्चा भी की गई, जिसमें वीएसके ने बताया कि यह आरोप गलत साबित हुए हैं. दरअसल, डॉ. अंबेडकर के समय से लेकर आज तक, संघ ने समाज के अलग अलग वर्गों को जोड़ने के लिए कई काम किए हैं. इस दौरान, आरएसएस पर लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए यह कहा गया कि संघ का मकसद केवल एक विशेष वर्ग या जाति को बढ़ावा देना नहीं था, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज की एकता को सुनिश्चित करना था.
वीएसके ने अपने बयान में महात्मा गांधी के आरएसएस से जुड़े अनुभव का भी जिक्र किया. गांधीजी ने 1934 में वर्धा में आरएसएस के शिविर का दौरा किया था और वहां उन्होंने महसूस किया कि संघ में कई जातियों और धर्मों के लोग एक साथ काम कर रहे थे. गांधीजी ने इस अनुभव को अपने शब्दों में साझा करते हुए कहा था कि आरएसएस के शिविर में जातिवाद के प्रति कोई भेदभाव नहीं था. सभी स्वयंसेवकों में एक ही भावना थी - "हम सभी हिंदू हैं."
गांधीजी के इस अनुभव ने आरएसएस की छवि को एक नई दिशा दी और उन्होंने डॉ. हेडगेवार से मुलाकात कर संघ के अस्पृश्यता उन्मूलन कार्यक्रम की सफलता की सराहना की थी. इस संदर्भ में वीएसके ने यह भी कहा कि आरएसएस के खिलाफ जो आरोप लगाए गए थे, जैसे कि तिरंगे का सम्मान नहीं करना या स्वतंत्रता संग्राम में भाग न लेना, वे सभी गलत थे.
वीएसके के अनुसार, यह दावा कि आरएसएस के स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार नहीं थे. भी पूरी तरह से गलत है. आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. ‘जंगल सत्याग्रह’ जैसे आंदोलनों में उनकी भागीदारी ने आरएसएस की प्रतिबद्धता को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति सिद्ध किया था.
No comments:
Post a Comment