चंडीगढ़ : कोरोना संक्रमण का चौतरफा निगेटिव इफेक्ट नजर आ रहा है। कोरोना संक्रमण के कारण अस्त-व्यस्त हुए जनजीवन ने लोगों को हरियाणा रोडवेज से दूर कर दिया है। राज्य में साढ़े तीन हजार से ज्यादा बसें हैं लेकिन इनमें से अधिकांश का पहिया थमा हुआ है। अंतरराज्यीय बसों को कई राज्य अभी भी अपने राज्यों में प्रवेश की इजाजत नहीं दे रहे हैं। इस कारण से केवल राज्य के अंदर एक जिले से दूसरे जिलों के लिए ही बसें चल रही हैं। इन बसों की संख्या अधिकतम छह सौ बताई जा रही हैं। कुल मिलाकर लाखों किमी का सफर तय करने वाली रोडवेज की बसें इन दिनों हजारों किलोमीटर का ही सफ कर रही हैं। कुल मिलाकर जैसे जैसे अनलाक वन में सशर्त अनुमति दी जा रही है, उसको ध्यान में रखते हुए हरियाणा रोडवेज के आला अफसरों के साथ में राज्य के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा ने रणनीति बनानी शुरु कर दी है। सूबे के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा खुले दिल से मानते हैं कि हरियाणा रोडवेज के सामने भी इस समय बेहद ही चुनौतीपूर्ण समय है। लेकिन हम पूरे हालात पर नजर बनाए हुए हैं। जिले में बीस फीसदी ही बसें ही चल रही ।
परिवहन मंत्री ने कहा कि अनलाक वन के बाद में अनलाक-2 में मिलने वाली छूट का इंतजार है। हमारे पड़ोसी राज्यों पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, हिमाचल की ओर बसों के आवागमन को छूट दिए जाने के बाद ही संचालन हो सकेगा। यहां पर उल्लेखनीय है कि हरियाणा रोडवेज के बेडे में इस समय 36 सौ लगभग बसें हैं। सामान्य दिनों में इनमें से 35 सौ रोडवेज की बसें सड़कों पर रहा करती थीं। अपनी गति और बढ़िया सर्विस के लिए हरियाणा रोडवेज मशहूर है लेकिन इन दिनों इसका पहिया थमा हुआ है। मात्र बीस फीसदी बसें ही प्रदेश के अंदर एक जिले से दूसरे जिलों में भेजी जा रही हैं। जिसमें भी यात्रियों को सोशल डस्टिेसिंग का पालन करते हुए आनलाइन बुकिंग करानी होती है, जिसके कारण इस समय यात्रियों की संख्या भी बेहद कम है। रोडवेज की आर्थिक मदद के लिए सीएम से गुहार हरियाणा के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा का कहना है कि इस समय काफी कम संख्या में बसें चल रही हैं। अधिक बसें चलाने के रणनीति बनाई जा रही है। मुख्यमंत्री के पास में फाइल भेजी है, इसके साथ ही पत्र भी लिखा है। कोरोना संक्रमण को लेकर सीएम को पत्र लिखकर कोविड फंड से रोडवेज महकमे की आर्थिक मदद की जाए। परिवहन मंत्री का कहना है कि रोडवेज कोई कमाई का सौदा नहीं है, बल्कि यह जनता की सेवा करने का माध्यम है। नहीं मिल रही पड़ोसी राज्यों से हरी झंडी हरियाणा रोडवेज विभाग अपनी बसों का संचालन करना चाहता है लेकिन पड़ोसी राज्यों की ओर से भी कोरोना संक्रमण के कारण इजाजत नहीं दी जा रही है। इंटरस्टेट बसें कुछ रूटों पर भेजी भी गईं लेकिन पंजाब, हिमाचल, दिल्ली यूपी व चंडीगढ़ ने संक्रमण के बढ़ते मरीजों को देखते हुए प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। कुछ इसी तरह से दिल्ली, यूपी पंजाब में भी दक्कित आईं। जिसके कारण इंटर स्टेट बसों का संचालन फिलहाल बंद रखने का फैसला लियगया। लेकिन आला-अफसरों व परिवहनमंत्री को सवारियों के साथ-साथ में राजस्व की भी चिंता है। राज्य के अंदर हर रोज औसतन 6सौ व सवा छह सौ बसें ही चल पा रही हैं। आलाइन बुकिंग की बात करें, तो कभी 16 और कभी इसके ऊपर बुकिंग कराई जाती है।प्रदेश बसों के बेडे में 36 लगभग बसें हैं। लेकिन इनमें से छह सौ मात्र ही सड़कों पर बसें चल रही हैं। सामान्य दिनों में हरियाणा रोडवेज की सभी बसें दस लाख किलोमीटर का सफर नापती थीं। 36 सौ बसों में कुछ बसें मरम्मत व सर्विस के लिए वर्कशाप में व बाकी सड़कों पर होती थीं। लेकिन इन दिनों अंतरराज्यीय बसों का पहिया थमा हुआ है। सुरक्षा उपकरण व आर्थिक पैकेज विभाग को दें ।
हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन प्रदेश महासचिव सरबत पूनियाका कहना है कि हमारे कर्मियों ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है। रोडवेज के सामने इस समय चुनौतीपूर्ण समय है, इस तरह के माहौल में विभाग को एक आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए। कर्मियों को काम करने के समय सुरक्षा उपकरणों की सुविधा की कमी है, जिसको जल्द ही पूरा करना होगा। पूनिया का कहना है कि कामकाज को पटरी पर लाना होगा, लेकिन अभी लोग खुद ही बाहर यात्रा से गुरेज कर रहे हैं। लेकिन पचास फीसदी बसें चलनी चाहिएं, जब सभी कर्मियों को सभी को ड्यूटी पर बुला लिया है। जबकि बसों का संचालन मुश्किल से दस से पंद्रह फीसदी ही हो रहा है।लोगों में अभी भी कोरोना संक्रमण का भय फैला हुआ है, जिसके कारण सवारी कम हैं। लोग अपने निजी वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं, अभी लोग यात्रा करने से भी गुरेज कर रहे हैं, मजबूरी व जागरूकता दोनों ही कारणों से एसा हो रहा है। अगर हम गौर करें, तो 23 मार्च के बाद में लाकडाउन हुआ राज्य के पास लगभग 36 सौ हैं। इस बीच में प्रवासी मजदूरों के लिए भी बसें फ्री में भेजी गईं थी। अब सारे खर्चों और घाटे को बाद में कर्मियों के माथे मढ़ने का काम होगा। जबकि घाटे के कारण सभी के सामने हैं। जब भी रोडवेज हड़ताल होती है, तो घाटे को लेकर बड़ी बड़ी बातें कही जाती हैं। तीन माह का समय हो गया, इतना बड़ा घाटा हो रहा, इस पर कोई अफसर बोलने को तैयार नहीं है। इस तरह के हालात में पैकेज देना चाहिए। कर्मियों का इसमें कोई कसूर नहीं है। कर्मचारी जो बाहर प्रदेशों में गए, उस तरह की सुविधाएं नहीं दी गईं। रोडवेज कर्मियों को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है, जनता के बीच में रहकर काम करना है। आने वाले समय में यात्री ज्यादा होंगे, तो हालात बदल जाएंगे।
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