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Thursday, October 17, 2024

“महर्षि वाल्मिकी की जयंती पर काव्य गोष्ठी में गूँजी साहित्यिक स्वर लहरियाँ”

*“महर्षि वाल्मिकी की जयंती पर काव्य गोष्ठी में गूँजी साहित्यिक स्वर लहरियाँ”*

*“महर्षि वाल्मिकी जयंती के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी: साहित्यिक प्रतिभाओं का संगम”*
जींद : चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द के हिन्दी विभाग और अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, जीन्द इकाई के संयुक्त तत्वावधान में महर्षि वाल्मिकी जयंती के अवसर पर भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य महर्षि वाल्मिकी की साहित्यिक और सामाजिक विरासत को सम्मानित करना और उनकी शिक्षाओं को जनमानस तक पहुँचाना था। गोष्ठी में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, कवियों, विद्यार्थियों और साहित्य प्रेमियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।कार्यक्रम का शुभारंभ संगीत विभाग की डॉ. भावना द्वारा गाए गए एक मधुर गीत से हुआ, जिसने समूचे माहौल को भावुक और सांस्कृतिक सौंदर्य से भर दिया। उनकी मनमोहक प्रस्तुति ने सभी उपस्थित लोगों को भाव विभोर कर दिया और गोष्ठी की शुरुआत को एक विशेष ऊँचाई प्रदान की। इसके पश्चात्, कार्यक्रम का विधिवत् उद्घाटन करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, जीन्द इकाई की अध्यक्ष मंजु मानव ने महर्षि वाल्मिकी के जीवन और उनकी महान काव्य रचना 'रामायण' पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वाल्मिकी न केवल संस्कृत साहित्य के महान रचनाकार थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से नैतिकता, सदाचार और मानवता के आदर्शों का प्रचार-प्रसार किया।हरियाणा प्रान्त की उपाध्यक्ष, डॉ. मंजू रेढू ने अपने उद्बोधन में इस बात पर विशेष जोर दिया कि आज की युवा पीढ़ी को महर्षि वाल्मिकी के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, आत्म-सुधार और सत्य के मार्ग पर चलकर जीवन का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है। महर्षि वाल्मिकी ने न केवल 'रामायण' जैसी महाकाव्य रचना की, बल्कि समाज को धर्म, नीति और न्याय की शिक्षा दी। उनका जीवन यह संदेश देता है कि व्यक्ति के कर्म और उसके जीवन की दिशा ही उसे महानता की ओर ले जाती है, चाहे उसकी प्रारंभिक परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मिकी जैसे महापुरुषों का जीवन आदर्श रूप में प्रस्तुत किया जाता है ताकि हर पीढ़ी उनसे कुछ न कुछ सीख सके। भारतीय संस्कृति की गहराई और उसमें निहित मूल्य आने वाली पीढ़ियों के लिए नैतिकता, मानवता और सेवा का मार्ग प्रशस्त करते हैं। डॉ. रेढू ने कहा कि युवाओं को वाल्मिकी की रचनाओं का अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि उनमें न केवल धार्मिकता का पाठ है, बल्कि एक ऐसे समाज की परिकल्पना है जो समता, समानता और नैतिकता पर आधारित हो।
महर्षि वाल्मिकी की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी वे प्राचीन काल में थीं। डॉ. रेढू ने कहा कि हमारी संस्कृति की समृद्धि का एक प्रमुख कारण यह है कि हमने महर्षि वाल्मिकी जैसे महान संतों की शिक्षाओं को आत्मसात किया है। यदि आने वाली पीढ़ियाँ इन मूल्यों को अपनाती हैं, तो समाज में नैतिकता और सद्भावना की स्थापना होगी, जो किसी भी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति का सूचक है। 
प्रान्तीय संचार मंत्री, डॉ. शवनीत सिंह कहा कि महर्षि वाल्मिकी का जीवन न केवल हमारे इतिहास का गौरव है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ है, जिसे समझने और अपनाने की आवश्यकता है।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, जीन्द इकाई के महामंत्री डॉ. ब्रजपाल ने कहा कि महर्षि वाल्मिकी की शिक्षाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव है। उन्होंने न केवल रामायण के माध्यम से आदर्श मानवता की शिक्षा दी, बल्कि समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनके काव्य ने समाज को दिशा प्रदान की और नैतिक मूल्यों की स्थापना में योगदान दिया।
डॉ. सुमन पूनिया, योग विज्ञान विभाग ने इस अवसर पर महर्षि वाल्मिकी के जीवन और योग के बीच संबंध की चर्चा की। उन्होंने बताया कि वाल्मिकी की शिक्षाएँ केवल काव्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनके दर्शन में जीवन जीने की कला भी निहित है, जो योग के सिद्धांतों के अनुरूप है। इसी क्रम में डॉ. पूनम बिडलान ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महर्षि वाल्मिकी की कृतियाँ हमें सदाचार, त्याग और मानवता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। डॉ. सुनील कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि वाल्मिकी का काव्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है और उनके आदर्श समाज में समता, समानता और समरसता की भावना को बढ़ावा देते हैं।
कार्यक्रम के दौरान कई कवियों ने महर्षि वाल्मिकी की जीवन गाथा और उनके काव्य पर आधारित रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें जीवन के उच्चतम आदर्शों और मानवता की सेवा का संदेश निहित था। श्रोताओं ने कवियों की प्रस्तुतियों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और इसे महर्षि वाल्मिकी के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देखा।
काव्य गोष्ठी के सफल आयोजन के लिए हिन्दी विभाग और अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, जीन्द इकाई के सदस्यों की सराहना की गई। इस आयोजन ने महर्षि वाल्मिकी के अमूल्य योगदान को याद करने का एक सशक्त मंच प्रदान किया और साहित्यिक गतिविधियों के प्रति विद्यार्थियों और समाज के लोगों में रुचि को प्रोत्साहित किया।

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