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Tuesday, February 4, 2025

*बासंती सांझ—कला, संस्कृति और कविता का संगम*

*बासंती सांझ—कला, संस्कृति और कविता का संगम*

*कहीं राग गूंजे, कहीं प्यार बरसे,* 
*फ़लक से ज़मीं तक सजी प्रेम गली है।*
जींद : साहित्य और संस्कृति प्रेमियों के लिए बसंत पर्व की संध्या एक अविस्मरणीय अनुभव रही, जब ‘बासंती सांझ’ नामक विशेष पर्व का चौधरी रणबीर सिंह विश्व विद्यालय जींद के हिन्दी विभाग और अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कला, संगीत और काव्य का अनूठा संगम देखने को मिला। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना से हुआ, इस अवसर पर कई प्रतिष्ठित कवियों और साहित्यकारों ने अपने भावपूर्ण विचारों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस सांस्कृतिक संध्या के मुख्य आकर्षणों में काव्य पाठ, संगीत और संवाद सत्र शामिल थे। विभिन्न कवियों ने वसंत ऋतु, प्रेम, प्रकृति और समाज से जुड़े सुंदर काव्य पाठ प्रस्तुत किए, जिन्होंने उपस्थित श्रोताओं के हृदय को छू लिया। लेखकों और श्रोताओं के बीच बसंत , साहित्य, संस्कृति और समाज से जुड़े बासंतिक विभिन्न विषयों पर सार्थक चर्चा हुई ।
इस आयोजन में प्रमुख साहित्यकारों और कवियों ने भाग लिया, जिनमें हिन्दी विभाग की वरिष्ठ उपस्थिति डॉ॰ मंजुलता, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की अध्यक्ष मंजु मानव, महामंत्री ब्रजपाल, पूनम बिडलान, सुमन पूनिया, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, प्रान्तीय प्रचार मंत्री शिवनीत सिंह, सुनील कुमार शामिल थे। उनकी उपस्थिति ने इस संध्या की गरिमा को और बढ़ाया। इस आयोजन के सफल संचालन का श्रेय सुश्री पूनम बिडलान को जाता है, जिन्होंने अपनी योग्यता से कुशल संचालन करते हुए इस संध्या को यादगार बनाया।
रजिस्ट्रार प्रोफेसर लवलीन मोहन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “बसंत पंचमी न केवल विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के प्रति श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह हमारे जीवन में सृजनात्मकता, नवीन ऊर्जा और विचारों की उज्ज्वलता का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें आयुर्वेद की शुद्धता, ऋषि-मुनियों की तपस्या, और ऐतिहासिक महत्व की की याद दिलाता है ”
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के प्रान्तीय प्रचार मंत्री शिवनीत सिंह ने कहा, “बसंत पंचमी केवल एक पर्व नहीं है, यह हमारे भीतर छिपे रचनात्मक ऊर्जा के जागरण का अवसर है। यह पर्व हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ने का सुअवसर प्रदान करता है।”
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, महामंत्री, जीन्द इकाई ब्रजपाल ने कहा, “आज के युग में हमने प्रकृति को निहारना छोड़ दिया है, जबकि बसंत पंचमी हमें प्रकृति के उल्लास और उत्सव के साथ जोड़ने का माध्यम है। इस पर्व का आयुर्वेदिक भी विशेष महत्व है, जो हमें स्वास्थ्य और संतुलन की ओर प्रेरित करता है।”
विद्यार्थियों ने इस अनूठी शाम की भूरी-भूरी प्रशंसा की। विद्यार्थी सचिन ने कहा, “बासंती सांझ ने हमें साहित्य, संगीत और संस्कृति के अद्भुत संगम से जोड़ा, यह एक अद्भुत अनुभव है”। 
राष्ट्रीय कैडेट कोर के होनहर केडिट अनन्त ने कहा, “बसंत पंचमी हमें न केवल पढ़ाई के प्रति जागरूक करती है, बल्कि हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से भी जोड़ती है।” युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए छात्रा संजना ने साझा किया, “बसंत ऋतु का आगमन नई ऊर्जा और उमंग लेकर आता है। यह पर्व हमें सकारात्मकता और सृजनात्मकता से भर देता है।” सचिन ने कहा, “बसंत पंचमी केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में ज्ञान, शांति और समृद्धि के नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है।”
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, सचिव, जीन्द इकाई पूनम बिडलान ने संचालन करते हुए बसंत पंचमी के उपलक्ष्य पर कहा, “बसंत पंचमी केवल वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति के विविध रंगों को उजागर करता है। यह पर्व हमें नई सोच और रचनात्मकता के साथ जीवन को देखने की प्रेरणा देता है।”
योग विभाग से डॉ॰ सुमन पूनिया ने सभी को बधाई देते हुए आभार व्यक्त किया कि इस आयोजन में शामिल होकर वे स्वयं प्रफुल्लित अनुभव कर रही हैं,उन्होंने कहा, “बसंत पंचमी हमें शरीर और मन के संतुलन की याद दिलाती है। योग के माध्यम से हम न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त कर सकते हैं, जो इस ऋतु के उल्लास से जुड़ी होती है।”
हिन्दी विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर सुनील कुमार ने कहा, “बसंत पंचमी साहित्य और कला के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने का अवसर है। यह पर्व हमें अपने भीतर छिपी सृजनात्मकता को खोजने और उसे अभिव्यक्त करने की प्रेरणा देता है।”
भावी पीढ़ी को अभिप्रेरित करत हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, प्रान्त उपाध्यक्ष डॉ. मंजुलता रेढू ने बसंत के महत्व और अपने भावों को सनातनी संस्कृति के मूल्यों से जोड़कर उत्सव मनाने की अपील की। उन्होंने आत्मबोध से विश्वबोध की ओर बढ़ने के लिए साहित्यकारों और युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। और यह भी इंगित किया कि इसी विषय पर आने वाले समय में और भी चर्चा करेंगे। आज बसन्त पंचमी के दिन इस भाव को मैं आप सबको सौपती हूँ और आने वाली बसन्त पचंमी तक आप इस बोध से भरे और अनुप्राणित होगें ऐसा मेरा विश्वास है। यदि सभी साहित्यकार इस भावधारा में बहकर अपनी लेखनी चलाए तो भावी समय में साहित्य का रूप और अधिक सुन्दर होगा। डॉ. मंजुलता ने ‘बासंती सांझ’ को रसमयी अर्थों में पिरोते हुए कहा:
"कहीं राग गूंजे, कहीं प्यार बरसे, 
फ़लक से ज़मीं तक सजी प्रेम गली है।”
और कहा
मन के आँगन में उमंगों की फुलवारी,
प्रकृति गुनगुनाए, जैसे राग मल्हारी।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की अध्यक्ष मंजु मानव ने कहा, “बसंत पंचमी समर्पण का भाव जगाती है, सकारात्मक सोच का उजाला फैलाती है।"
"सौंधी मिट्टी की खुशबू हमने महकती देखी, 
इसकी मासूमियत में हमने बन्दगी देखी।"
अंत में, ‘बासंती सांझ’ ने सभी को एक मधुर और प्रेरणादायक अनुभव दिया, जो लंबे समय तक याद रखा जाएगा। आयोजकों ने इस तरह के और भी सांस्कृतिक आयोजनों की प्रतिबद्धता जताई, जिससे साहित्य और कला को प्रोत्साहन मिलता रहे।

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