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Monday, September 7, 2020

जानें श्राद्धों से जुड़े ये अनोखे तथ्य, क्यों मनाते हैं श्राद्ध ?

जानें श्राद्धों से जुड़े ये अनोखे तथ्य, क्यों मनाते हैं श्राद्ध ?

एक तरफ तो यह माना जाता है कि जब इंसान मरता है तो उसका पुनर्जन्म होता है.. मतलब अगर घर में किसी बुजुर्ग की मृत्यु हुई है तो वे अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे। दूसरी तरफ श्राद्ध में पितरों को खिला कर हम यह सिद्ध करते हैं कि वह बेचारे कहीं भूख से तड़प रहे हैं पर उन्हें खीर हलवे की जरूरत है। अब यह सोचिए अगर तो उनका जन्म कहीं पर हो गया है तो उन्हें हमारा पहुंच दिया खाना नहीं पहुंचेगा। दूसरी बात अगर जन्म नहीं हुआ वह अभी भी ब्रह्मांड में घूम रहे हैं तो पुनर्जन्म की थ्योरी गलत हो जाती है। लेकिन कोई इस बात पर विचार ही नहीं करना चाहता!
घरों में सुख शांति समृद्धि के लिए श्राद्ध जरूरी है, यह कहकर हम सदियों से श्राद्ध कर रहे हैं। लेकिन क्या हमारे देश से गरीबी दूर हो गई ?ठीक है ,आप कहें कि एक तरह का दान ही है, अगर दान है तो कृपया जरूरतमंद को दीजिए। पंडितों को खिलाने से कोई फायदा नहीं( कृपया पंडित जन क्षमा करें) अब तो पंडित लोग भी श्राद्ध में परेशान हो जाते हैं।
अब इस के वैज्ञानिक कारण पर आते हैं जो कि बहुत ही उचित और सार्थक है। आप जानते हैं कि पितृ पक्ष पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक 15- 16 दिन का होता है और यह वर्षा ऋतु के बाद आता है.. परंतु पितृपक्ष मेँ कौवे को ही भोजन क्यों ?
आप ने कभी पीपल या बड का पेड लगाया?अथवा किसी को लगाते देखा?"नहीं।"यह दोनों पेड बीज के रोपने से नहीं उगते।ये दोनों अति उपयोगी पेड को उगाने की प्रकृति माँ ने अलग ही प्रबंध किया है।इनके बीजों को जब कौवे खाते हैं , तब उनके पेट में एक विशेष क्रिया से इनके बीजों में विशेष परिवर्तन होता है। जो बीजों को पेड़ उगने के लिए परिपक्व करता है।इसके सिवा और कोइ रीत नहीं है !फिर जहाँ कौवे बीट करते है वहाँ ये पेड उगते हैं ।
पीपल वह एकमात्र पेड है, जो सबसे अधिक प्राणवायु ( O2) देता है। पीपल ज्यादा ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों में सबसे पहला स्थान रखता है। बड के गुण भी बहुत हैं। वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड खींचने और ऑक्सीजन देने की इसकी क्षमता बेजोड़ है। दवाओं में तो इसका बहुत ही ज्यादा प्रयोग होता है। ये दोनों पेड तभी तक रहेंगे जब तक कौवे रहेंगे। वर्षा ऋतु के बाद वे अँडे देते हैं। तो उनकी नयी पीढी के भोजन का उपयुक्त प्रबंध करने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने समाज में प्रथा डाली कि श्राद्ध में लोग छतों पर भोजन अवश्य रखें। उसके बीज पेड़ों को उगने में सहायक होंगे। ये हमारा प्रकृति रक्षण में सहयोग होगा। देखिए वह तब के समय में भी प्रकृति के प्रति कितने सजग थे?
मैंने बहुत से लोगों को श्राद्ध पर मजाक बनाते देखा है. अपनी परंपरा पर हँसे नहीं , सहर्ष पालन करें। सनातन धर्म जितना वैज्ञानिक और सार्थक कुछ भी नहीं, हर एक प्रथा, रिवाज के पीछे एक बहुत बड़ा तर्क और विज्ञान कार्य करता है!बस उस तर्क को जानने की जरूरत है। आज के बाद आपसे कोई पूछे कि आप लोग श्राद्ध क्यों करते हो? तो यह कारण बतलाएं कि आपके पूर्वजों ने प्रकृति की रक्षा के लिए एक महान व्यवस्था की है ना कि पितरों को खिलाने वाला। यह कौवे कोई हमारे पितृ बन कर नहीं हमारी प्रकृति के रक्षक बनकर आते हैं। इसलिए उन दिनों में इन्हें जरूर भोजन दें क्योंकि प्रकृति नहीं तो हम भी नहीं।

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