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Friday, March 5, 2021

अकेले किसान नहीं हर कमेरे वर्ग की लड़ाई है यह आंदोलन- डॉक्टर संतोष दहिया

अकेले किसान नहीं हर कमेरे वर्ग की लड़ाई है यह आंदोलन- डॉक्टर संतोष दहिया 

जींद : राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित सर्वजातीय महिला खाप महापंचायत की राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ संतोष दहिया ने जारी प्रेस वार्ता में बताया कि देशभर से  महिला किसानों और उनके हकों के लिए काम करने वाली महिलाओं ने कृषि बिलों को देश विरोधी मानते हुए किसान आंदोलन में महिलाओं ने चूल्हे चौके  के साथ साथ धरने व अन्य संघर्षी गतिविधियों में भागीदारी सुनिश्चित की है। सर्वजातीय सर्वखाप महिला महापंचायत की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संतोष दहिया ने  किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं खेतों में काम करते हुए बड़ी हुई हूं और आज जब खेती पर सबसे बड़ा संकट है। तो इसे टालने के लिए महिलाओं का आगे आना भी स्वाभाविक है। महिलाएं सदियों से खेती कर रही हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक कृषि परंपरा का बोझ पुरुषों के साथ ही महिलाओं के कंधों पर भी है। लेकिन ना तो कभी उनके योगदान को चिन्हित किया गया और न ही इसका महत्व समझा गया। हालांकि पिछले कुछ सालों में कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि 2010-2011 की कृषि जनगणना के मुताबिक ग्रामीण महिला श्रमिकों में से 75 फीसदी कृषि कार्य में लगी हैं। देश की महिलाओं की सबसे बड़ी आबादी खेती से जुड़ी है और उनके अधिकार भी सुनिश्चित किए जाने चाहिएं। राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ. संतोष दहिया ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों का महिला किसानों पर भी सीधा असर पडऩा स्वाभाविक है। सरकार को टालमटोल का रवैया अविलंब त्यागते हुए कृषि कानूनों को निरस्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने कभी संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ा है। किसान आंदोलन में भी महिलाओं की सहभागिता अतुलनीय है।
महिलाएं घर परिवार और सड़क के संघर्ष दोनों की जिम्मेवारी मजबूती से निभा रही है हमें एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी होगी अपने अधिकारों के लिए हमें दूसरी ताकतों का मुंह  ताक ने की बजाय अपने बाजू में बल पैदा करना होगा। यदि महिलाओं के अधिकारों पर चोट की गई तो अबला से बला बनने से भी वह पीछे नहीं हटेगी । महिलाएं इस समन्वय के साथ आगे बढ़ेंगी तो आधी आबादी को अपना पूरा हक हासिल करने से कोई ताकत नहीं रोक सकती। देश में खेती से जुड़े 50 फ़ीसदी से अधिक कार्यों में महिलाएं शामिल है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 23 वर्षों में खेती-किसानी से संबंधित 3लाख 53 हजार 802 किसानों ने आत्महत्या की है। जबकि इस समय अवधि में 50 हजार 188 महिला किसान की मौतें हुई हैं खेती किसानी करने वालों की जिंदगी  एक ऐसी डगर पर चलती है कि जरा सा से चलते ही कोई न कोई फंदा उनका गला करने को तैयार रहता है यह लड़ाई केवल किसान की नहीं बल्कि यह लड़ाई हर उस कमेरे वर्ग की है जोकर माफ कर दो वक्त की रोटी खा पाता है सरकार को जनभावना के अनुरूप तीनों कृषि कानून रद करने का निर्णय लेना चाहिए। किसानों को राष्ट्र विरोधी कहकर बदनाम करना बंद होना चाहिए।

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