Breaking

Friday, September 13, 2024

हिन्दी की पूर्व संध्या पर आयोजित काव्य गोष्ठी

हिन्दी की पूर्व संध्या पर आयोजित काव्य गोष्ठी

‘हिन्दी मेरा दिनमान है, हिन्दी मेरा स्वाभिमान है… डॉ. मंजुलता
जींद: किसी भी भाषा का विकास में जनसंचार माध्यमों की महत्वपूर्ण होती है। इस दृष्टि से हिन्दी भाषा के विकास में आधुनिक जनसंचार माध्यमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस समय ई-जर्नलिज्म, ई-ट्रेनिंग, ई-एजुकेशन, ई-गवर्नेंस आदि के कारण ई-युग का प्रारम्भ हो चुका है। ऐसी स्थिति में हिन्दी को विकसित कर विश्वभाषा बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका इंटरनेट निभा रहा है। यह बात अखिल भारतीय साहित्य परिषद्‌, जीन्द इकाई की अध्यक्ष डॉ॰ मंजुलता ने ‘हिन्दी दिवस’ की पूर्व संध्या पर आयोजित गोष्ठी में कही।21वीं सदी सायबर युग की है, कोई भी काम अब इंटरनेट के बिना अधूरा है लगता है और यही इंटरनेट विश्वभर में घर-घर तक पहुँच चुका है। ऐसे में हिन्दी अगर तकनीक की भाषा बन जाए, तो विश्वभाषा बनने में देर नहीं लगेगी। हिन्दी को विश्वभाषा बनाने में इंटरनेट इसलिए भी लाभप्रद है कि हिन्दी भाषी भारतीय भूल के लोग कई देशों में बसे हुए हैं, जो अपने देश से जुड़े रहना चाहते हैं। आज हिन्दी का प्रयोग भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में बल्कि विश्व के अनेक देशों में हो रहा है। विदेशों में भी हिन्दी अध्ययन-अध्यापन बल पकड़ रहा है। विश्व के 44 से अधिक देशों में बोली और समझी जाने वाली भाषा है। विश्व के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन और अनुसंधान की व्यवस्था है। लगातार हिन्दी के जानने और बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है आने वाले दिनों में हिन्दी अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में उभरेगी। इंटरनेट के कारण ही वह केवल भारत की सीमाओं में कैद नहीं रही, बल्कि वह बड़े स्तर पर संवाद और संपर्क की कड़ी बनी। विश्व बाजार के दबाव और लोगों के बढ़ते रूझाने के कारण पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में आया कि ‘स्टार न्यूज’ जैसे चैनल, जो अंग्रेजी में आरम्भ हुए, वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णतः हिन्दी चैनल में रूपांतरित हो गये हैं। साथ ही, ‘ई॰ एस॰ पी॰ एन’ तथा ‘स्टार स्पोट्‌र्स’ जैसे खेल चैनल भी हिन्दी में कमेंटरी देने लगे हैं। अनेक हिन्दी समाचार-पत्रों के इंटरनेट संस्करण आ चुके हैं। भारतीय सिनेमा ने भी हिन्दी भाषा को देश-काल की सीमा से बाहर निकालकर विश्व पटल पर लेकर जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भावी पीढ़ी को उन्होंने कहा कि हिन्दी होकर कभी भी कंधे नहीं  झुकाने पड़ते मैं स्वयं में इसका उदाहरण हूँ। मैं गौरवान्वित हूँ कि 
‘हिन्दी मेरा दिनमान है,
हिन्दी मेरा स्वाभिमान  है।
मेरा जीवन है हिन्दी से,
हिन्दी मेरी सांसें हैं, प्राण है॥’
अखिल भारतीय साहित्य परिषद की महामंत्री वरिष्ठ साहित्यकार मंजू मानव ने बहुत ही भावपूर्ण लहजे में हिंदी के प्रति अपने भावों अभिव्यक्त करते हुए काव्य पाठ किया और उन्होंने कहा कि
हिन्दी  की  बिन्दी  सिखाती  है  हमको, 
अस्मत  तो  इसकी  बचानी  पडेगी। 
जो  भूलते  जा रहे  इसकी  गरिमा, 
अनमोल  कीमत  चुकानी पड़ेगी॥
डॉ. ब्रजपाल ने कहा कि ‘हिन्दी दिवस’ की अग्रिम बधाई देते कहा कि सभी भाषाओं का अपना महत्त्व है लेकिन उन सब में हिन्दी भाषा का अपना विशेष स्थान है। हिन्दी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। जो अपना क्षेत्र विस्तृत करते हुए विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों में आज पढ़ाई जा रही है।निश्चित तौर पर आगामी समय हिन्दी भाषा-भाषियों के लिए उज्ज्वल होगा क्योंकि हिन्दी भाषा अब तकनीक की भाषा बनती जा रही है। तकनीक के साथ जुड़ने के उपरान्त हिन्दी भाषियों के लिए रोजगार के नए-नए द्वार खुले हैं। वैश्विकरण के दौर में यह केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के प्रसिद्ध देशों के मध्य वैचारिक आदान-प्रदान की भाषा बनती जा रही है। हिन्दी भाषा हृदय के उद्‌गारों को व्यक्त करने का सबसे सरल एवं सशक्त माध्यम है।
प्रान्तीय संचार मंत्री डॉ॰ शिवनीत सिंह ने कहा कि हिन्दी भविष्य की भाषा है। हिंदी कोमलता और सौम्यता की बात की कुछ ओर है। हिन्दी ने तकनीक के साथ अपना स्थान लेना आरंभ कर दिया है ।कंप्यूटर, मोबाइल फोन में भी हिंदी टाइपिंग, गूगल हिंदी आदि ऐप्स(Apps) प्रस्तुत है जो हिंदी को वर्तमान की भाषा बनाते हैं। आज हिंदी प्रेमी युवा भी हिंदी में न केवल संदेश भेजते हैं अपितु हिंदी में ही मोबाइल पर भी कार्य  भी करते हैं। तकनीकी रूप से हिन्दी को और ज्यादा उन्नत, समृद्ध तथा आसान बनाने के लिए अब कई सॉफ्टवेयर भी हिन्दी के लिए बन रहे हैं।
डॉ. पूनम पूजित ने काव्य पक्तियों से गोष्ठी को सजाते हुए काव्य पाठ किया और गर्व से कहा कि.. 
खेत माट्टी त जुड़ी हुई मैं हरियाणा की नार सूं
ना समझिये अणजान मनै मैं सृष्टि का सार सूं 

पेट पाड़ क जन्म देऊ जब,
मैं ब्रम्हा त कम कोन्या ।
गिल्ये मै भी गेल सो जावै,
नर मै इतना दम कोन्या ।
मैं ठयरी घर-बारण निराळी
घर की देशी खार सूं .....

गरीबों की झोपड़ियाँ गिराने लगे हैं लोग 
महल शोहरत के बनाने लगे हैं लोग 

न कुछ मिट सका तो इरादे बदल दिये
अब तो खुद ही मिटने मिटाने लगे हैं लोग
आगे उन्होंने बताया कि हिंदी भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है और हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की प्रतीक है। यह देश के करोड़ों लोगों की मातृभाषा है, जो न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में बोली और समझी जाती है। हिंदी का साहित्य समृद्ध और विविधता से भरा हुआ है, जिसमें कविता, कथा, नाटक और उपन्यास जैसी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ शामिल हैं।
डॉ.सुमन एनसीसी अधिकारी और योगा सांइस विभाग की प्रभारी ने कहा कि हिंदी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक समय तक, समाज को एकजुट करने और विचारों का आदान-प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई है। यह एक ऐसी भाषा है जो लोगों के दिलों को जोड़ती है और भारतीय संस्कृति, परंपरा और मूल्य को संजोए रखती है। हिंदी का महत्व आज वैश्विक स्तर पर भी बढ़ रहा है, और इसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाना और प्रोत्साहित करना हम सबकी जिम्मेदारी है।डॉ. सुनील ने कहा कि हिन्दी भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ करोड़ों लोगों की मातृभाषा भी है। हिंदी का साहित्य, कविता, कहानियाँ और लोकगीत भारतीय संस्कृति और परंपराओं को गहराई से समेटे हुए है। आज के डिजिटल युग में हिंदी का महत्व तेजी से बढ़ रहा है, और यह वैश्विक मंचों पर अपनी पहचान मजबूत कर रही है।हिंदी हमारे भावों की भाषा है जो प्रत्येक व्यक्ति के दिल को छू लेती है। पर जीवन की गति को बनाए रखने के लिए अन्य भाषाओं का भी विशेष महत्व है।
डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज ने कहा कि हिन्दी का बढ़ता कद वैश्विक स्तर पर तेजी से दिखाई दे रहा है। भारत में इसे न केवल आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है, बल्कि डिजिटल युग में इसकी लोकप्रियता और उपयोग भी बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे इसका महत्व और प्रसार दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। भविष्य में हिंदी का कद और ऊंचा होने की उम्मीद है।
डॉ. पूनम बिड़ाण ने संगोष्ठी का कुशल संचालन करते हुए हिन्दी की गरिमामयी साप्रासंगिक प्रस्तुतियाँ सभी सहभागियों को सौपी और कहा कि हिन्दी मिठ्ठी-मधुर वाणी, हर दिल को यह भाती है। शब्द-शब्द में शहद घुला, हर मन को यह लुभाती है। हिन्दी हमारी भाषा ही नहीं हमारी पहचान भी है। हमें गैर-हिन्दी भाषा-भाषियों को भी हिंदी के प्रति जागरूक करना चाहिए।

No comments:

Post a Comment