मंदिरों में केवल ब्राह्मण ही पुजारी क्यों, HC ने सरकार से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
नेशनल डेस्क : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से यह सवाल पूछा है कि धार्मिक स्थलों पर पुजारी के रूप में नियुक्ति के लिए केवल ब्राह्मणों को ही अवसर क्यों दिया जा रहा है, जबकि हिंदू धर्म की सभी जातियों को क्यों नहीं। यह जनहित याचिका अधिकारियों और कर्मचारियों के संगठन ने दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार द्वारा संचालित धार्मिक स्थलों पर नियुक्तियों से संबंधित सवाल उठाए गए हैं। आइए जानते है इस खबर को विस्तार से…
*याचिका में क्या सवाल उठाए गए ?*
आपको बता दें कि याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजजाक्स) ने मध्य प्रदेश विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। इस विधेयक के तहत, राज्य सरकार ने 350 से अधिक मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों को अधिसूचित किया है, जो राज्य के नियंत्रण में आते हैं।
दरअसल, याचिकाकर्ता का इस पूरे मामले पर कहना है कि निर्दिष्ट मंदिर विधेयक की धारा 46 के तहत धार्मिक स्थलों पर पुजारी के रूप में केवल ब्राह्मणों की नियुक्ति की अनुमति दी गई है। इसके लिए राज्य सरकार राजकोष से वेतन का प्रावधान करती है। याचिकाकर्ता का यह आरोप है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन है, क्योंकि हिंदू धर्म में ओबीसी/एससी/एसटी वर्ग भी शामिल हैं, और पुजारी के पद के लिए केवल एक जाति को प्राथमिकता देना अनुचित है।
*सरकार का पक्ष*
वहीं इस मामले पर राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता एक कर्मचारी संगठन है, और इसे याचिका दायर करने का कानूनी अधिकार नहीं है। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर और पुष्पेंद्र शाह ने अपनी दलील में कहा कि, “सदियों से मंदिरों में केवल ब्राह्मण ही पूजा करते आ रहे हैं, और इस पर सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहा है”। उन्होंने यह भी कहा कि 2019 में राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए पुजारी नियुक्त करने का कानून बनाया था, जिसके तहत पुजारियों को वेतन दिया जाता है, लेकिन इस बारे में आम जनता को जानकारी नहीं दी गई है।
*चार हफ्ते में जवाब दें राज्य सरकार*
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद राज्य सरकार को चार हफ्ते में जवाब देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जीएडी, सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय और लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर उनसे जवाब दाखिल करने को कहा है।
*संविधानिक पहलू*
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा पुजारी की नियुक्ति में जातिगत भेदभाव किया जा रहा है, जो संविधान के समता (Article 14) और न्याय (Article 15, 16) के सिद्धांतों का उल्लंघन है। उनके अनुसार, सरकार द्वारा केवल एक विशेष जाति को नियुक्ति का अवसर देना अन्य जातियों के साथ भेदभाव है, जो समाज में असमानता और असमान अवसर का कारण बनता है।
इस याचिका की सुनवाई से यह सवाल उठता है कि धार्मिक स्थलों पर पुजारियों की नियुक्ति में जातिगत भेदभाव क्यों किया जा रहा है। जहां एक ओर राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए पुजारियों की नियुक्ति में वेतन आधारित व्यवस्था शुरू की है, वहीं दूसरी ओर इसे संविधान और सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से चुनौती दी जा रही है। अब यह देखना होगा कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इस मामले में किस तरह का निर्णय देता है और क्या राज्य सरकार इस नियुक्ति प्रक्रिया में किसी सुधार की योजना बनाती है।
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