लेखक : डॉ. गणेश कौशिक |
यह कैसा मौसम,
बसंत या पतझड़
बसंत या पतझड़
सूखे पेड़ जमीन पे ,
धाराशायी पत्ते
धाराशायी पत्ते
एक-एक कर गिर गए
ये लाशें पतझड़ की
टूटी हुई टहनियां
गाने की जगह रोती हैं
जगह-जगह बिखरा रक्त
यह बसंत या पतझड़
कोख उजाड़ने वालों ।
देखो कुछ तो संबंध होते होंगे तुमसे
सम्बंध नहीं तो भाई का संबंध तो
भाई का सम्बंध तो अवश्य होगा तुमसे
एक ही मिट्टी में जन्मे हैं हम
एक ही आसमा की छत मिली है हमें
एक ही सूर्य की तपन
एक ही चंद्रमा की शीतलता मिली है
जननी एक ही है
फिर उजाड़ ते क्यों हो कोख
यह कैसा मौसम है ?
पतझड़ या बसंत ।
लेखक :( डॉ. गणेश कौशिक )
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