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Tuesday, July 28, 2020

हरियाणा में रजिस्ट्रियों का खेल- उपायुक्तों से सेटिंग कर रहे तहसीलदार, सियासी ढाल व राजनीतिक संरक्षण ढूंढते फिर रहे

हरियाणा में रजिस्ट्रियों का खेल-उपायुक्तों से सेटिंग कर रहे तहसीलदार, सियासी ढाल व राजनीतिक संरक्षण ढूंढते फिर रहे


चंडीगढ़। हरियाणा के विभिन्न जिलों में चल रही रजिस्ट्री घोटाले की जांच के बीच तहसीलदार अब जिला उपायुक्तों से अपनी सेटिंग बैठाने की फिराक में हैं। कई तहसीलदार ऐसे हैं,जो अपने बचाव के लिए राजनीतिक संरक्षण ढूंढते फिर रहे हैं। कुछ तहसीलदारों ने जिला उपायुक्तों को भरोसे में लेने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। कई जिलों में खुद जिला उपायुक्त और एसडीएम इस रजिस्ट्री घोटाले की बड़ी कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं। इससे बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा कि जिला उपायुक्त अपने ही विरुद्ध रजिस्ट्री घोटाले की निष्पक्ष जांच को किस तरह से अंजाम दे सकेंगे।

ऐसे में कैसे होगी निष्पक्ष जांच
हरियाणा सरकार ने रजिस्ट्रियों में अनियमितताओं की शिकायत के बाद 32 कंट्रोल एरिया में लाकडाउन के दौरान हुई रजिस्ट्रियों की जांच कराने का निर्णय लिया है। जांच की जिम्मेदारी जिला उपायुक्तों को सौंपी गई है। तब तक रजिस्ट्रियां बंद रहेंगी। प्रदेश सरकार की कोशिश 15 अगस्त से दोबारा रजिस्ट्रियां आरंभ करने की है। उस समय तक जिला उपायुक्तों की रिपोर्ट भी प्रदेश सरकार के पास पहुंच जाएगी।

एनसीआर के जिलों में सबसे ज्यादा लूटमारी

रजिस्ट्रियों के अवैध खेल में जिला उपायुक्तों से लेकर एसडीएम, जिला राजस्व अधिकारी, टाउन एंड कंट्री प्लानर, तहसीलादर, नायब तहसीलदार और रजिस्ट्री क्लर्क तक शामिल होते हैं। एसडीएम को जिला उपायुक्त का प्रतिनिधि मानकर खेल किया जाता है। प्रदेश में कई तहसीलदार मुख्यालय ऐसे हैं,जहां अवैध रजिस्ट्री कराने वाले दलालों के नाम तय हैं। यह दलाल रजिस्ट्री कराने वालों से एक साथ कागज और रकम ले लेते हैं और फिर किसी एक दिन तहसील मुख्यालय में सारी रजिस्ट्रियों को एक बार में ही अंजाम दिया जाता है।

सबसे अधिक दिक्कत छोटे प्लाट धारकों के लिए

सबसे अधिक दिक्कत छोटे प्लाट धारकों,छोटे मकान मालिकों और अवैध कालोनियों में प्लाट लेने वालों के लिए है। नियम के अनुसार इस श्रेणी के लोगों को यदि रजिस्ट्री करानी है तो पहले उन्हेंं जिला नगर योजनाकार के कार्यालय से एनओसी लेनी पड़ेगी। जिला नगर योजनाकार अवैध कालोनियों में प्लाटों व मकानों की रजिस्ट्री के लिए एनओसी नहीं देते। यदि दे भी दी जाती है तो उसकी मोटी रकम वसूल की जाती है। तहसील कार्यालयों के बाहर बैठा दलालों का रैकेट बिना एनओसी के ही रजिस्ट्री कराने की गारंटी लेता है।  इसकी एवज में दो लाख से दस लाख रुपये तक वसूल किए जाते हैं, जिसकी बाद में हिस्सेदारी होती है।

राजनीतिक आकाओं और अधिकारियों से सेटिंग

हरियाणा में रजिस्ट्रियों में गड़बड़ का सबसे बड़ा खेल दिल्ली से सटे बड़े शहरों गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल, झज्जर, बहादुरगढ़ और सोनीपत में होता है। गुरुग्राम में बेशकीमती जमीन है। यहां अवैध जमीनों की रजिस्ट्री कराने में मोटा खेल चलता है। यही स्थिति फरीदाबाद व बहादुरगढ़ की भी है। अंबाला, पंचकूला, करनाल, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, जींद और रोहतक में भी अवैध रजिस्ट्रियों की रिपोर्ट सरकार के पास पहुंची है।
एनसीआर के जिलों में पोस्टिंग के लिए तहसीलदार अपने राजनीतिक आकाओं को भी खुश करने का कोई तरीका नहीं छोड़ते। इनके तार चंडीगढ़ में बैठे उच्च अधिकारियों तक भी जुड़े हैं। ऐसे में जिला उपायुक्तों की बजाय एसीएस स्तर के अधिकारी को ही जांच सौंपी जानी चाहिए थी।

सीएम मनोहलाल चाह रहे पारदर्शी बने सिस्टम

मुख्यमंत्री मनोहर लाल चाहते हैं कि सिस्टम में सुधार हो। इसलिए ही उन्होंने रजिस्ट्रियों में अनियमितताओं की जांच खुद कराने का फैसला लिया है,लेकिन जिस तरह से विपक्ष हमलावर उससे सरकार को जवाब देना भारी पड़ रहा है। शराब घोटाले की जांच रिपोर्ट भी अभी तक नहीं आई है।
बताते हैं कि इस रजिस्ट्री घोटाले का पता तब चला, जब एक बड़े अधिकारी के रिश्तेदार से पैसे मांगे गए। उसने डिप्टी सीएम और सीएम दोनों से शिकायत की तो वह शिकायत बाकी विधायकों द्वारा पूर्व में की गई शिकायत से मेल खा गई, जिसके आधार पर सरकार मामले की तह में जाकर सिस्टम को पारदर्शी बनाने के लिए तैयार हुई है।

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