Breaking

Sunday, September 20, 2020

मर गईं संवेदनाए:काेराेना से जान गंवाने वालों के परिजन अंतिम दर्शन को पीजीआई व श्मशान के काटते रहते हैं चक्कर, अपनों के अंतिम दर्शन भी नहीं

मर गईं संवेदनाए:काेराेना से जान गंवाने वालों के परिजन अंतिम दर्शन को पीजीआई व श्मशान के काटते रहते हैं चक्कर, अपनों के अंतिम दर्शन भी नहीं

रोहतक : कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले मरीजों में से कई के परिजनों को तो उनके अंतिम दर्शन तक नसीब नहीं हो रहे। परिजन पीजीआई से लेकर श्मशान घाट तक चक्कर काटते रहते हैं, लेकिन स्वास्थ्य कर्मी और नगर निगम कर्मचारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। पीजीआई में और न ही श्मशान घाट में परिजनों को शव का चेहरा दिखाया जाता। परिजन रोते-बिलखते पैरों में गिरते रहते हैं कि बस एक बार चेहरा दिखा दो।
उन्हें तसल्ली तो करवा दो वे जिसे मुखाग्नि दे रहे हैं वह उनका अपना ही है। निगम की टीम कहती है कि पीजीआई में अंतिम दर्शन करो। पीजीआई वाले कहते हैं कि श्मशान घाट में चेहरा देखना, लेकिन दिखाते कहीं नहीं। शवों पर लगी नाम की पर्ची देखकर ही भारी मन से परिजन मुखाग्नि देते हैं। यह कैसा सिस्टम है जो परिजनों को अंतिम दर्शन तक नहीं करवा पा रहा। क्या सिस्टम की संवेदना मर चुकी है। अधिकारियों तक शायद इनकी चीख-पुकार नहीं पहुंच रही। यदि शवों को पारदर्शी बैग में रखा जाए तो यह समस्या खत्म हो सकती है।
पारदर्शी बैग में होना चाहिए शव: देवेंद्र भारत
हरियाणा स्वर्णकार संघ के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र भारत ने कहा कि कोरोना मरीज की मृत्यु होने पर परिजनों को चेहरा न दिखाना अमानवीय और असंवेदनशीलता को दर्शाता है। कोराेना से मौत होने पर शव को पारदर्शी बैग में रखना चाहिए, जिससे शव के अंतिम दर्शन हो सके। उन्होंने बताया कि हरियाणा स्वर्णकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष चिंरजीलाल वर्मा के अंतिम संस्कार के समय उनका चेहरा उनके परिजनों को नहीं दिखाया गया था।
पीजीआई, श्मशान घाट में भटकेे, हमें अंतिम दर्शन नहीं करवाए
14 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट मिलने के बाद हमने पापा को पीजीआई में भर्ती कराया था। 24 घंटे में एक बार रात 12 बजे से रात 2 बजे के बीच में ही पीजीआई से हमें घर पर फोन आता। कभी गले में नली डालने की कहते तो कभी दिल का दौरा आने की आशंका जताते। शुक्रवार रात डेढ़ बजे खबर दी कि दिल का दौरा पड़ने से पापा इस दुनिया में नहीं रहे। यह भी भरोसा दिया कि शव पैक करने से पहले चेहरा दिखा देंगे। रात 4 बजे मैं पीजीआई पहुंचा तो सुबह 6 बजे पापा के साथ का सामान लेने के लिए बुलाया गया, लेकिन दर्शन नहीं करवाए। कंट्रोल रूम के कहने के मुताबिक हम अंतिम दर्शन के इंतजार में पीजीआई के ट्रामा सेंटर के गेट पर शनिवार दोपहर 1:15 बजे से पौने दो घंटे तक खड़े रहे।
दिन में 3:15 बजे स्ट्रेचर पर एक शव लेकर बीयरर आया। पूछने पर बताया गया कि यह मेरे पापा का शव है। हम उम्मीद थी कि अब अंतिम दर्शन कर पाएंगे। इस बीच बीयरर और एंबुलेंस ड्राइवर का आपस में झगड़ा हो गया। बीयर अकेला था उसने एंबुलेंस में शव को रखवाने के लिए ड्राइवर से मदद मांगी। उसने इंकार कर दिया। फिर दोनों आपस में उलझ गए। करीब आधा घंटा यह हंगामा चलता रहा। बाद में दूसरे बियरर के आने पर शव एंबुलेंस में रखा। उन्होंने अंतिम दर्शन नहीं करवाए और वैश्य कॉलेज के पास श्मशान में आने को कहा। मैं ट्रामा सेंटर और एमएस ऑफिस के बीच दौड़ता रहा, लेकिन पापा के अंतिम दर्शन नहीं कर सका। श्मशान घाट भी ऐसा करने से मना कर दिया गया। जीवन भर यह दुख हमारा परिवार नहीं भूल पाएगा। शासन-प्रशासन को यह व्यवस्था बदलनी चाहिए। कम से कम परिजनों से अपनों का अंतिम दर्शन करने का अधिकार तो उनसे न छीना जाए। पापा के जाने से ज्यादा पीड़ा उनके पार्थिव शरीर की बेकद्री देखकर हुई। - अमित शर्मा, कोरोना से जान गंवाने वाले प्रीत विहार काॅलोनी निवासी श्रीकृष्ण कुमार शर्मा के बेटे

पहले इलाज के लिए गिड़गिड़ाते रहे, फिर मरने के बाद अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके

आज रात मेरा बचना मुश्किल है भाई! चाहे जैसे मुझे यहां से ले चलो। मुझे ब्लीडिंग हुई है। यूरिन की नली निकल गई है। उसे लगाने वाला भी कोई नहीं है। शुक्रवार-शनिवार की रात फोन पर बातचीत में यह शब्द मेरे छोटे भाई 45 वर्षीय संजय के थे, जो 33 दिन से पीजीआईएमएस में भर्ती था। हमने डॉक्टरों को गुहार भी लगाई कि मरीज को आईसीयू में शिफ्ट कर दो या फिर उसकी छुट्‌टी कर दो। हम उसे घर पर ही क्वॉरेंटाइन कर देंगे। हमारी किसी ने नहीं सुनी। डांट-डपटकर भगा देते थे। शुक्रवार-शनिवार की रात 4:10 बजे उसकी मौत हो गई।
संजय की मौत की खबर भी हमें शनिवार सुबह 8 बजे तब हुई, जब किसी नर्स के जरिए हमने पता करवाया। पीजीआई के कंट्रोल रूप से हमें मौत की सूचना भी नहीं मिली। इसके बाद शव के अंतिम दर्शन को हम गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन पीजीआई में किसी ने भी नहीं सुना। पीजीआई में कहा गया कि श्मशान घाट पर चेहरा दिखा देंगे। श्मशान घाट पर निगम कर्मियों ने सख्ती से मना कर दिया कि उनको ऐसा करने की इजाजत नहीं है। शव पर लगी नाम की पर्ची को ही हम देख सके। पीजीआई, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम क्या इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि परिजनों को अंतिम दर्शन भी नहीं करवा सकते। यह व्यवस्था बदलनी चाहिए। - जगत सिंह दलाल, कोरोना से मरने वाले छारा निवासी संजय के भाई

6 फीट की दूरी से दर्शन कराएगी निगम की टीम: सीएमओ

गाइडलाइंस के अनुसार कोरोना मरीज के निधन के बाद उनके परिवार के सदस्यों को 6 फीट की दूरी से अंतिम दर्शन करने की अनुमति रहेगी। श्मशान घाट पर ही निगम की टीम निर्धारित नियमों के अनुसार परिजनों को मृतक के अंतिम दर्शन कराएगी। इस बाबत चर्चा हो चुकी है। - डॉ. अनिल बिरला, सिविल सर्जन, रोहतक।

चेहरा दिखाने का नियम नहीं, हंगामे पर होगा केस: कमिश्नर

कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार गाइडलाइन के मुताबिक निगम की टीम श्मशान घाट या कब्रिस्तान पर करती है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से हमें शव दिया जाता है। श्मशान घाट पर चेहरा दिखाने का कायदा नहीं है। सारा कुछ कानूनन किया जाता है। फिर भी कोई हंगामा करता है, उसके खिलाफ केस दर्ज करा देंगे।- प्रदीप गोदारा, कमिश्नर, नगर निगम, रोहतक

No comments:

Post a Comment