क्योंकि आवारा पशुओं को हटाने के लिए ऐसा ही गणित लगा रही है नगर परिषद, ये लोगों को समझ नहीं आ रहा; इसलिए परेशानी झेलनी|सीकर आवारा सांड के हमले में बुजुर्ग व्यापारी की मौत से भी नहीं जागे अफसर; हर साल लाखों खर्च करने के बाद भी सड़कों पर बढ़ रहे हैं आवारा पशु
शहर में बेसहारा व आवारा जानवर जानलेवा बनते जा रहे हैं। शहर में आवारा सांडाें की संख्या 300 से ज्यादा हो चुकी है। इनमें कई सांड हिंसक हाे चुके हैं। नगर परिषद और प्रशासनिक अधिकारी समस्या से मुक्ति दिलाने का दावा करते रहे हैं, लेकिन नगर परिषद ने आवारा सांडाें काे पकड़ने में काेताही बरती। न ही नंदीशाला बनी और गाै संरक्षण के नाम पर सेस वसूलने वाली सरकार के स्तर पर भी प्रयास नहीं हुए।
इस लापरवाही का नतीजा ये रहा कि आवारा पशुओं ने 6 साल में सात लाेगाें की जान ले ली। इनमें 22 साल के युवा से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं। रविवार सुबह पिपराली राेड पर हिंसक सांड ने बुजुर्ग व्यापारी रूपचंद मेहता की जान ले ली। इसके बाद भी नगर परिषद के अफसरों की नींद नहीं टूटी, क्योंकि शहर की सड़कों पर सैकड़ों आवारा पशु खुलेआम घूम रहे हैं। दैनिक भास्कर ने उन पीड़ित परिवाराें का दर्द जाना, जिन्हाेंने हिंसक सांडाें के हमले से अपनाें काे खाेया।
पत्थरदिल अफसर ये कहानियां जरूर पढ़ें क्याेंकि आवारा सांडाें ने कई परिवारों को दिया है दर्द
बच्चाें काे बचाने के प्रयास में बुजुर्ग ने गंवा दी जान
3 सितंबर काे तेजा काॅलाेनी के सुखदेवाराम माॅर्निंग वाॅक पर निकले। कांग्रेस कार्यालय के पास एक आवारा सांड उधर से गुजर रहे बच्चाें के पीछे दाैड़ा। सुखदेवाराम ने लकड़ी से सांड काे भगाने का प्रयास किया, लेकिन सांड उनके पीछे पड़ गया। उन्हें सींगाें में उछाल दिया, जिससे वे गंभीर घायल हाे गए। उन्हें बाद में अस्पताल ले गए, लेकिन डाॅक्टर ने मृत घाेषित कर दिया।
मां के जाने से अधूरा हो गया परिवार
पाेलाे ग्राउंड निवासी राजकुमार सिंधी का कहना है कि उनकी बुजुर्ग मां गंगा देवी रास्ते में जा रही थी। अचानक सांड ने पीछे से हमला बाेला और वह काेमा में चली गई। वह बच नहीं पाई। उनकी कमी से परिवार के लाेग अकेले हाे गए हैं। मां हाेती ताे वह पूरा घर संभाल लेती थी। उनकी भरपाई कभी पूरी नहीं हाे सकती। ऐसी घटनाओं के लिए नगर परिषद ही जिम्मेदार है।
पिता की मौत के बाद कंपनियाें का काम छाेड़ना पड़ा
आनंद नगर निवासी एडवाेकेट दीपक शर्मा का कहना है कि उनके पिता नंदलाल शर्मा भी वकील थे। 2015 में वे घूमने निकले थे। अचानक आवारा सांड ने हमला कर गंभीर घायल कर दिया। दाे-ढाई महीने बाद उनकी माैत हाे गई थी। उनके चले जाने के बाद पांच-छह कंपनियाें के ट्राेले संभालने के काम बीच में ही छाेड़ने पड़े।
परिवार अभी तक सदमे में
शहर की माथुर काॅलाेनी में रहने वाले अभिषेक माथुर के अनुसार उसके दादा ह्रदयनरायण माथुर नाै अगस्त की शाम घर से बाहर घूमने निकले थे। अचानक सांड ने आकर टक्कर मारी ताे सिर में ब्लाॅकेज हाेने से दादा काे जयपुर भर्ती कराना पड़ा। यहां कुछ दिन भर्ती रहे और 25 अगस्त काे वे जिंदगी से जंग हार गए। सिर से बुजुर्ग का साया उठ जाने से पूरा परिवार सदमे में है।
लड़ते सांडों की वजह से बेटा खाेया
सारण की गली में रहने वाले दिनेश त्रिवेदी काे सांड की वजह से दाे-दाे जख्म झेलने पड़े। बजाज राेड पर दाे-तीन सांड लड़ते हुए आए और उनके बेटे दीपक काे चपेट में ले लिया। तीन दिन काेमा में रहने के बाद दीपक की माैत हाे गई। पाेते के चले जाने से इनके पिता वैद्य शंकरलाल त्रिवेदी सदमे में आ गए और उन्हाेंने खाट पकड़ ली। इसके बाद पाेते की याद में वे भी चल बसे।
मुखिया के जाने के बाद बिगड़ी परिवार की आर्थिक हालत
चार कुतुब चाैक निवासी बैतूल बानाे ने बताया कि उसके पति गुलाम नबी पोती जैनब को स्कूल छोड़ने जा रहे थे। इस दौरान सांड ने हमला कर दिया। इसके बाद वे कई दिन हाॅस्पिटल में भर्ती रहे और 2016 में उनकी माैत हाे गई। गुलाम नबी नगर परिषद सीकर में बागवान थे। अब परिवार की आर्थिक हालत खराब है।
*बदहाली के लिए ये हैं जिम्मेदार*
कलेक्टर : शहर काे आवारा जानवराें से बचाने के लिए प्लानिंग तैयार नहीं हुई। नगर परिषद अफसराें काे पाबंद नहीं कर पाए।
सभापति : ढंग से माॅनिटरिंग भी नहीं कर पाए। इसलिए शहर में आवारा जानवराें का पकड़ने अभियान नहीं चला।
*नगर परिषद आयुक्त* आयुक्त श्रवण विश्नाेई ने ध्यान नहीं दिया। इसलिए शहर में आवारा सांडाें की संख्या बढ़ती गई।
तीन बड़ी लापरवाहियां
कमजोर माॅनिटरिंग : आवारा जानवराें काे पकड़ने के लिए नगर परिषद के पास स्थायी प्लानिंग नहीं है।
बजट का सदुपयाेग नहीं : हर साल नंदीशाला काे 13 लाख दे रहे हैं, लेकिन आवारा सांडाें काे वहां नहीं रख रहे हैं।
स्थायी समाधान नहीं : लाेगाें काे हादसाें से बचाने के लिए अफसर आज तक स्थायी समाधान नहीं खाेज सके।
एक्सपर्ट व्यू : ऐसे मामले में केस करें, मिल सकता है मुआवजा
अगर आप सड़कों और गलियों पर घूमने वाली आवारा गाय या फिर किसी जानवर के हमले के शिकार हुए हैं, तो आप स्थानीय प्रशासन और सरकार के खिलाफ केस करके अच्छा मुआवजा पा सकते हैं। अगर हमला करने वाले जानवर का कोई मालिक है, तो पीड़ित पक्ष उसके खिलाफ क्रिमिनल या सिविल केस कर सकता है। अगर गाय, कुत्ता या फिर किसी अन्य जानवर के मालिक के खिलाफ सिविल केस किया जाता है तो कोर्ट पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलाता है। वहीं, क्रिमिनल केस में आरोपी को दोषी पाए जाने पर सजा सुनाई जाती है और जुर्माना लगाया जाता है।
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