हज और उमराह में क्या होता है फर्क? जानिए इस्लाम में दोनों का महत्व
नई दिल्ली : इस्लाम धर्म में हज और उमराह दो महत्वपूर्ण धार्मिक यात्राएं हैं. हर मुसलमान के दिल में ये तमन्ना होती है कि अपनी जिंदगी में वो एक बार हज करने जरूर जाएगा क्योंकि हज करना शुभ माना जाता है. दुनिया के कोने-कोने से लोग हज करने सऊदी अरब जाते हैं. यहां मक्का-मदीना में हज करके अपने दिल की मुराद पूरी करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों में क्या अंतर है? हज, उमराह से किस तरह अलग है और इनका इस्लामी परंपराओं में क्या महत्व है? आइये जानते हैं.
सबसे पहले बात करते हैं हज की. हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और इसे हर उस मुसलमान के लिए अनिवार्य माना जाता है, जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हो. हज यात्रा इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने में की जाती है और यह कई दिनों तक चलता है. यह एक सामूहिक तीर्थयात्रा है जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं. हज और उमराह दोनों के लिए मुसलमान सऊदी अरब के शहर मक्का जाते हैं. हज के दौरान तीर्थयात्री कई अनुष्ठान करते हैं जैसे तवाफ (काबा के चारों ओर सात चक्कर लगाना), सई (सफा और मारवाह पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ना) और अराफात में प्रार्थना. यह तीर्थयात्रा पैगंबर इब्राहिम और उनके परिवार की याद में की जाती है और इसे पापों से मुक्ति का एक रास्ता माना जाता है. हज यात्रा कई दिनों तक चलती है और ज्यादा खर्चीली भी होती है.
दूसरी ओर मक्का की जियारत को उमराह कहते हैं. उमराह को हज का ही छोटा रूप भी कहा जाता है. उमराह का मतलब आबादी वाली जगह से है जहां एक साथ बड़ी आबादी इकट्ठा होती है. उमराह में हज के कुछ मुख्य अनुष्ठानों को ही शामिल किया जाता है जैसे तवाफ. इसमें लोग काबा के चारों तरफ तवाफ करते हैं जिनका तवाफ पूरा हो जाता है उनका उमराह मुकम्मल माना जाता है. हज के मुकाबले उमराह कम समय में पूरा किया जा सकता है और कम खर्चीला होता है. उमराह के दौरान कुरान पढ़ी जाती है और अल्लाह की इबादत सच्चे मन से की जाती है. उमराह भले ही छोटा हो, लेकिन इसका आध्यात्मिक महत्व कम नहीं है. यह अल्लाह के प्रति भक्ति और विनम्रता का प्रतीक है.
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