जींद : ( संजय तिरँगाधारी ) प्रेस विज्ञप्ति हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था की ऑनलाइन काव्य पाठ के लिए लाइव कविता पाठ वरिष्ठ साहित्यकार व कवि डॉ.गणेश कौशिक को आमंत्रित किया गया । आधे घंटे की लाइव टेलीकास्ट कवि सम्मेलन में डॉ. गणेश कौशिक ने विभिन्न विषयों जैसे व्यभिचार, भ्रष्टाचार ,आगजनी जाति पाती व विशेष रूप से कोरोना त्रासदी को लेकर बहुत प्रभावी वह प्रशंसनीय कविता पाठ किया । उन्होंने अपनी पहली कविता के रूप में मजदूरों की दयनीय दशा पर प्रकाश डाले।
'' चलते गए मरते गए मसीहा उसे उपेक्षित वह मजदूर थे बड़े मजबूर थे रक्तपात ,हिंसा व आगजनी पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना सुर ताल के साथ सुनाए । ''एक घर जला कई झुलसे हुए मिले जिंदगी हुई तबाह कई अपने ही मिले हमने तो हमने तो बोए थे ,अहिंसा के शांति बीज हमें फसल में चाकू -छुरी मिले ,हमारा मुस्कुराना दूभर हुआ दर्द हर चीज से सस्ता हुआ। अन्य रचना में उन्होंने देश प्रेम और देश देशहित की कविता सुनाकर वाहवाही लूटी। उद्देश्य हमारा एक हो देश बने महान, फिर से सोने की चिड़िया कहलाये, न हो किसी का अपमान, देश बने महान । एक अन्य कविता में उनके उद्गार से थे ''जब से धरती जाति- पाती में बट गई है तब से मानवता बहुत हद तक सिमट गई है'' । अंत में डॉ गणेश कौशिक ने कहा हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था हिंदी साहित्य के लिए इस प्रकार के आयोजन कर हिंदी साहित्य का संवर्धन वह विकास कर रही है। साहित्यकारों को एक मंच प्रदान कर रही है । डॉ. गणेश कौशिक ,का बहुत लोगों द्वारा सम्मान वह प्रशंसा की गई।
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