जींद की शान आईपीएस कुलदीप सिंह चहल, उझाना गांव के रहने वाले है कुलदीप, नरवाना के लोगो ने खुशी की उमंग
जींद : ( संजय तिरँगाधारी ) सपने वो होते हैं जो सोने नहीं देते – कुलदीप सिंह चहल, 2009 बैच के आईपीएस ऑफिसर हैं, जिनके बारे में प्रसिद्ध है कि वे जहां भी पोस्टेड होते हैं, वहां का क्राइम ग्राफ अपने आप नीचे आ जाता है और लॉ एंड ऑर्डर बढ़िया तरीके से मेंटेन होता है। एएसआई से आईपीएस तक का यह सफर कुलदीप के लिए आसान नहीं था, खासकर तब जब उन्होंने यूपीएससी परीक्षा के दौरान कभी भी नौकरी नहीं छोड़ी और नौकरी भी ऐसी जिसमें कभी भी कोई भी ड्यूटी आपको पुकार सकती है। ये कोई 9 टू 5 का जॉब नहीं, जहां कम से कम ऑफिस आवर्स के बाद का टाइम अपना होता है या जहां हफ्ते में दो दिन की छुट्टी मिलती है। हम सभी वाकिफ हैं कि पुलिस की नौकरी आसान नहीं होती, जहां कभी भी कोई भी इमरजेंसी आ सकती है।पर कुलदीप ने कभी अपनी वर्तामान नौकरी को रास्ते की बाधा नहीं बनाया बल्कि नौकरी के बीच-बीच में समय निकालकर तैयारी की और सफलता भी पायी।
बड़े भाई बने बड़ा सहारा –
कुलदीप के बड़े भाई सुरेश चहल पंचकूला में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थे। वे कुलदीप को अपने साथ ले गये। वहां कुलदीप की मुलाकात उस समय यूपीएससी की तैयारी कर रहे और वर्तमान में आईपीएस ऑफिसर, संजय कुमार से हुयी।
कुलदीप ने चंडीगढ़ पुलिस की परीक्षा दी और फिजिकल टेस्ट काफी कठिन होने के बावजूद सेलेक्ट हो गये क्योंकि वो हमेशा से एक स्पोर्ट्स पर्सन थे। साल 2005 में वे चंडीगढ़ पुलिस में एएसआई के पद पर चयनित हो गए। कुलदीप का जन्म साल 1981 में हरियाणा के जींद जिले के उझाना गांव में हुआ था।उनकी स्कूली शिक्षा भी यही हुई। हायर स्टडीज़ की बात करें तो कुलदीप ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली। इसके बाद कुलदीप अपने बड़े भाई के साथ पंचकूला चले गये जहां उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए किया।
एक साक्षात्कार में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुये कुलदीप कहते हैं कि गांव में बहुत काम करना पड़ता था..
बचपन की यह बात करते हुये कुलदीप खूब हंसते हैं कि पिता साधु राम जी कहते थे स्कूल जाओ न जाओ भैसों को पानी पिला दिया कि नहीं?
सपने वो होते हैं जो सोने नहीं देते –
कुलदीप ने अपने जीवन में एपीजे अब्दुल कलाम की कही इस लाइन को हमेशा याद रखा, कि सपने वो नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो सोने नहीं देते। कुलदीप भी इसी टैग लाइन को जीवन का मंत्र मानते हुए लगे रहे और तब तक नहीं रुके जब तक मंजिल मिल नहीं गयी। सफलता शायद तब ज्यादा जरूरी हो जाती है जब हारने का विकल्प ही न हो । कुलदीप बताते हैं कि उनके घरों में बहुत-बहुत काम होता था, इतना कि आप सोच भी नहीं सकते। एक मजदूर जितना काम करते हैं, वो सब उन्होंने किया है। उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था सिवाय पढ़ायी करके कुछ बनने के या वापस उस जिंदगी में जाने के जो उनके मन नहीं भाती थी। ऐसे में कुलदीप ने कठिन परिश्रम को चुना और दिन-रात एक करके अपनी किस्मत के अक्षर खुद बदल लिए।
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