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Thursday, September 3, 2020

अनाेखा मामला:दाे लाडलों का पिता ले रहा था लाडली याेजना का लाभ, आरटीआई में 10 साल बाद हुआ खुलासा

अनाेखा मामला:दाे लाडलों का पिता ले रहा था लाडली याेजना का लाभ, आरटीआई में 10 साल बाद हुआ खुलासा

समाज कल्याण विभाग ब्याज सहित करेगा रिकवरी योजना केवल लड़कियों के माता-पिता के लिए

हिसार : हरियाणा सरकार की लाडली योजना के तहत ऐसे माता-पिता को 2250 प्रतिमाह पेंशन दी जाती है जिनकी सिर्फ लड़कियां हैं। लेकिन इस योजना से संबंधित एक अनोखा मामला जिला समाज कल्याण विभाग में सामने आया है। गांव रावलवास खुर्द का एक व्यक्ति दो बेटे होने के बावजूद लाडली योजना का 10 साल तक लाभ लेता रहा। आरटीआई में राज खुला तो विभाग ने रिकवरी के लिए नोटिस भेजा है।

जानिए क्या है मामला

रावलवास खुर्द का एक व्यक्ति दो पुत्र होने के बावजूद 10 साल से पेंशन ले रहा था। जिसका पता विभाग को रावलवास खुर्द के छोटूराम द्वारा आरटीआई लगाने के बाद पता चला। जिला समाज कल्याण विभाग अधिकारी डॉ. डीएस सैनी ने बताया कि सुरजीत 2010 से पेंशन ले रहा था। विभाग ने सुरजीत को 144850 रुपए की रिकवरी का नोटिस भेजा है। इसके साथ ही विभाग 12% परसेंट के हिसाब से 6311 रुपये ब्याज भी वसूलेगा।

पूर्वनिरीक्षण का भी नहीं कोई प्रावधान

डॉ. डीएस सैनी ने बताया कि ऐसा पाया जाने पर व्यक्ति पर कोई केस करने का प्रावधान विभाग की गाइडलाइंस में नहीं है। पेंशन के दस्तावेजों के साथ आवेदक से एक घोषणा पत्र साइन कराया जाता है। जिस पर साफ-साफ लिखा होता है कि यदि इन दस्तावेजों में कोई गड़बड़ी पाई गई तो वह 12 परसेंट ब्याज के साथ सारी रकम वापस करेगा। उन्होंने बताया कि लाडली पेंशन से संबंधित यह पहला ऐसा मामला है। साथ ही उन्होंने कहा कि ढाई लाख लाभार्थियों के घर-घर जाकर निरीक्षण करना आसान नहीं। इसलिए पूर्वनिरीक्षण का भी कोई प्रावधान नहीं है। जबकि मंडल रोजगार विभाग की तरफ से पढ़े-लिखे बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने से पहले घर जाकर निरीक्षण किया जाता है। वहीं यदि सही तरीके पेंशन लाभार्थियों की जांच की जाए तो एक बड़ा फर्जीवाड़ा निकल कर सामने आ सकता है।

मामला रफा-दफा करने की कोशिश, केस दर्ज हो

शिकायतकर्ता छोटू राम का कहना है कि गलत रूप से लाभ उठा रहे व्यक्ति के पिता रिटायर्ड पटवारी हैं और उन्होंने संबंधों का गलत इस्तेमाल करके इस पेंशन को बनवाया। विभाग की नाक के नीचे 10 साल ऐसा हुआ और उन्हें भनक तक नहीं लगी। 10 साल बाद भी आरटीआई लगाने के बाद ही विभाग की आंखें खुली। इसके बाद भी विभाग सिर्फ रिकवरी अमाउंट लेकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहा है। जबकि व्यक्ति पर 420 और 406 के तहत का मुकदमा होना चाहिए। इस पर एडवोकेट राजेश वर्मा का कहना है कि ऐसे मामले में केस करने या न करने का फैसला लेने का हक विभाग का है। विभाग चाहे तो ऐसे मामलों में केस भी कर सकता है।

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