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Saturday, May 1, 2021

क्रांतिकारी युवा संगठन ने अंतराष्ट्रीय दिवस पर मजदूरों को अपने हकों के लिए किया जागरूक

क्रांतिकारी युवा संगठन ने अंतराष्ट्रीय दिवस पर मजदूरों को अपने हकों के लिए किया जागरूक

-कोरोना महामारी के चलते केन्द्र सरकार ने मजदूरों के अधिकारियों पर बोला हमला
जींद /नरवाना : क्रांतिकारी युवा संगठन और मजदूर एकता केंद्र ने अंतराष्ट्रीय मजदूर दिवस के 135वीं वर्षगांठ पर नरवाना के लेबर चौक और अनाज मंडियों में पर्चा वितरण कर नुक्कड़ सभाएं की। संगठन के सदस्य कुलदीप ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मई दिवस मजदूरों के संघर्षों का त्योहार है । आज से लगभग 135 साल पहले अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने काम के घंटे कम करवाने के लिए आंदोलन किया और इस आंदोलन में सात मजदूरों की गोली लगने से मौत हुई। पूंजीवादी सरकार ने इस आंदोलन को कुचलना चाहा, लेकिन इस गोलीबारी के बाद यह आंदोलन अमेरिका में ही नहीं पूरे विश्व में फैल गया। आंदोलन के दबाव में अमेरिका की सरकार ने मजदूरों की मांगों के आगे झुकना पड़ा और काम के घंटे जो पहले कोई निश्चित नहीं थे कानूनी रूप से 8 घंटे करने पड़े। इस दिन को पूरे विश्व में मजदूर दिवस के रूप में मनाने का मजदूर संगठनों ने आह्वान किया। भारत में 1 मई 1923 को मद्रास के मजदूर किसान नेता सिंगारावेलु चेतियार ने पहली बार भारत में मजदूर दिवस मनाया और इस दिन हाई कोर्ट मद्रास के सामने बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों ने प्रदर्शन किया और इस दिन सार्वजनिक छुट्टी बनाने का ऐलान किया। कुलदीप ने कहा कि आज अधिकार मजदूरों को अपने संघर्ष की बदौलत मिले थे, मोदी सरकार धीरे धीरे उनको खत्म कर रही है । कोरोना महामारी की आड़ में मोदी सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करके मजदूरों के अधिकारों पर बहुत बड़ा हमला बोला है। सरकार श्रम कानूनों को बदलकर पूंजीपतियों के हक में लागू कर रही है। करोना की आड़ में काम के घंटे 8 की बजाए 12 घंटे कानूनी रूप से कर दिए हैं । काम काम के घंटे बढऩे से जहां एक तरफ बेरोजगारी बढ़ेगी, वहीं दूसरी तरफ मजदूरों का शोषण भी बढ़ेगा। सरकार मजदूरों के हकों पर लगातार हमले कर रही है । इस मौके पर संगठन के सदस्य कुलदीप, विक्रम वीरेंद्र, रवि, सलिंदर, अजय, विकास मौजूद रहे।
-कोरोना ने स्वास्थ्य सेवाओं की खोली पोल-
सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल कोरोना महामारी के दौरान खुल गई है और सरकार जो बड़े-बड़े वादे कर सत्ता में आई थी वह सिर्फ चुनावी जुमले थे और जनता को बरगलाने के लिए सिर्फ वोट लेने का एक षड्यंत्र मात्र थे। आज सरकार सिर्फ और सिर्फ अंबानी अडानी के लिए काम कर रही है पीछे साल हुए एक सर्वे में 2020 में लॉकडाउन के समय भी अंबानी की हर घंटे की जो आमदनी थी उसे कमाने के लिए एक मजदूर को 10000 साल तक काम करना पड़ेगा। तो इस सिर्फ एक आंकड़े से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में जो 1991 में उदारवाद की नीतियां लागू की गई थी। जिसमें सपने दिखाए थे कि सब को रोजगार मिलेगा और जो आर्थिक असमानता है वह कम होगी। लेकिन आज 30 साल बाद आर्थिक असमानता कम होने की बजाय कई गुना तेजी से बढ़ रही है और बेरोजगारी का आंकड़ा भी आसमान छू रहा है । मोदी सरकार की नीतियों से मेहनतकश जनता को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन मोदी सरकार सिर्फ अपने चहेतों में और चुनावी रैलियों में व्यस्त दिखाई दे रही है और उसे जनता का दुख दर्द बिल्कुल नहीं दिख रहा। सरकार का रवैया जन आंदोलोनो के प्रति बिल्कुल असंवेदनशील है ,और हर आंदोलन को सरकार तानाशाही तरीके से दबाना चाहती हैं। ऐसे में मेहनतकश आबादी को अपने इतिहास को याद करने की जरूरत है, जो अधिकार संघर्ष की बदौलत मिले थे। उनको दोबारा से लागू करवाने के लिए लिए देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है। 

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