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Friday, August 20, 2021

फिर भी वर्षों से ले रहे हैं पेंशन

हरियाणा के ये 11 विधायक दलबदल के तहत खो चुके विधानसभा सदस्यता, फिर भी वर्षों से ले रहे हैं पेंशन
चंडीगढ़ : हरियाणा में 11 पूर्व विधायक ऐसे हैं जिनकी दलबदल कानून के तहत विधानसभा की सदस्यता खत्म कर दी गई। लेकिन ये पूर्व विधायक अब भी पूर्व विधायक होने के नाते पेंशन व अन्य सुविधाएं ले रहे हैं।

आपको बता दें कि इन 11 दलबदलू विधायको में छह विधायकों को 15 वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2006 में अयोग्य घोषित किया था। वहीं, तत्कालीन स्पीकर द्वारा अयोग्य घोषित पांच अन्य दलबदलू पूर्व विधायकों के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में वर्ष 2014 से सुनवाई लंबित है।

आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर ने हरियाणा विधानसभा सचिवालय से आरटीआई कानून के तहत इसकी जानकारी ली है। आपको बता दें कि जगजीत सांगवान, कर्ण सिंह दलाल, राजेंद्र सिंह बीसला, देव राज दीवान, भीम सेन मेहता व जयप्रकाश गुप्ता 9 मार्च 2000 से 25 जून 2004 तक विधायक रहे थे।
इन सभी छह विधायकों को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सतबीर सिंह कादियान ने दलबदल के मामले में 25 जून 2004 को विधानसभा के अयोग्य घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 11 दिसंबर 2006 को सुनाए फैसले में इन विधायकों की अपील को खारिज करते हुए फैसले को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य घोषित होने के 15 वर्ष बाद भी दलबदल करने वाले यह पूर्व विधायक पेंशन व सुविधाएं ले रहे हैं।
इसी तरह वर्ष 2009 में हरियाणा जनहित पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए धर्म सिंह छोकर, राव नरेंद्र सिंह, जिले राम शर्मा, सतपाल सांगवान व विनोद भ्याना को भी तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा ने अयोग्य घोषित कर दिया था। जिसके बाद इनकी अपील वर्ष 2014 से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में लंबित हैं।
दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित यह सभी ग्यारह दलबदलू पूर्व विधायक वर्षों से 51,800 मासिक पेंशन व 10 हजार रुपये यात्रा भत्ता प्रति माह ले रहे हैं। इसके अलावा विधायक रहते हुए पांच वर्ष तक हर महीने वेतन, आफिस खर्च, टेलीफोन बिल, सत्कार भत्ता व अन्य भत्ते व अन्य सुविधाओं का लाभ भी उठाते रहे।
आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर ने इन सभी दलबदलू 11 पूर्व विधायकों की पेंशन को जनता के पैसे की लूट बताते हुए इसे तत्काल बंद करने व इनके द्वारा ली गई समस्त पेंशन, भत्ते, वेतन राशि की ब्याज सहित वसूली की मांग की है।
दल-बदल का साधारण अर्थ एक-दल से दूसरे दल में सम्मिलित होना हैं। संविधान के अनुसार भारत में *निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं –*
किसी विधायक का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना। मौलिक सिध्दान्तों पर विधायक का अपनी पार्टी की नीति के विरुध्द योगदान करना। किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक का निर्दलीय रहना। परन्तु पार्टी से निष्कासित किए जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा।
सारी स्थितियों पर यदि विचार करें तो दल बदल की स्थिति तब होती है जब किसी भी दल के सांसद या विधायक अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ते हैं या पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हैं। इस स्थिति में उनकी सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है और उनपर दल बदल निरोधक कानून लागू होगा।
लेकिन यदि किसी पार्टी के एक साथ दो तिहाई सांसद या विधायक पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर ये कानून लागू नहीं होगा पर उन्हें अपना स्वतन्त्र दल बनाने की अनुमति नहीं है वो किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं।
1) दल बदल कानून लोकसभा या विधान सभा अध्यक्ष पर लागू नहीं होता है, मतलब यदि लोकसभा या विधान सभा का कोई सदस्य अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अपने दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दे या फिर दल के व्हिप के विरुद्ध जाकर मतदान कर दे तो उस पर ये कानून लागू नहीं होता है।
2) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के दौरान दल के व्हिप का उलंघन करने पर भी सदस्यों पर दल बदल कानून लागू नहीं होता है। दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित व्यक्ति तब तक मंत्री बनने के लिए अयोग्य रहता है जब तब वह दुबारा चुन कर सदन का सदस्य न बन जाए|

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