आज से सावन मास शुरू:अगले 117 में से 75 दिन उत्सव के, शिव पूजा के 10 आसान स्टेप्स, सेहत के लिए आयुर्वेद और योग के टिप्स
हरियाणा बुलेटिन न्यूज़ : आज से हिन्दी पंचांग का पांचवां महीना सावन शुरू हो गया है। ये भगवान शिव की आराधना का महीना है और उत्सवों की शुरुआत का भी। अगले 117 दिन यानी 8 नवंबर 2022 (कार्तिक पूर्णिमा) तक 75 दिन बड़े व्रत और उत्सव के होंगे।
सावन का धर्म ग्रंथों से लेकर आयुर्वेद तक में बहुत महत्व है। धर्म ग्रंथों में सावन को श्रावण भी कहते हैं। शिवपुराण कहता है कि ये महीना श्रवण करने यानी सुनने का है, इसलिए इसका नाम श्रावण है। इस महीने में धार्मिक कथाएं और प्रवचन सुनने की परंपरा है। सावन बदलाव का महीना भी है। ज्येष्ठ और आषाढ़ की गर्मी के बाद बारिश शुरू हो रही है। आयुर्वेद में सावन को योग-ध्यान का महीना कहा गया है। इन दिनों में खानपान से लेकर हमारे एक्सरसाइज करने के तरीकों तक में बदलाव करना चाहिए।
*सावन क्यों प्रिय है शिव जी को?*
सावन में अन्य देवी-देवताओं के मुकाबले शिव जी की पूजा सबसे अधिक की जाती है। ये पूरा महीना ही शिव जी को समर्पित है। ऐसा कहते हैं कि सावन महीने में ही देवी पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू की थी। तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और देवी की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। सावन महीना शिव जी को प्रिय होने की दो खास वजहें हैं। पहली, इसी महीने से देवी पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप शुरू किया था। दूसरी, देवी सती के जाने के बाद शिव जी को फिर से अपनी शक्ति यानी देवी पार्वती पत्नी के रूप में वापस मिली थीं।
शिवपुराण की विद्येश्वरसंहिता के अध्याय 16 में शिव जी कहते हैं कि मासों में श्रावण (सावन) मुझे बहुत प्रिय है। इस महीने में श्रवण नक्षत्र वाली पूर्णिमा रहती है। इस वजह से भी माह को श्रावण कहते हैं। सावन महीने में सूर्य अधिकतर समय कर्क राशि में रहता है। जब सूर्य कर्क राशि में होता है, उस समय में की गई शिव पूजा जल्दी सफल होती है।
*शिवलिंग पर ठंडे जल की धारा से अभिषेक क्यों किया जाता है?*
इस परंपरा के पीछे समुद्र मंथन की कथा है। जब देवताओं और दानवों ने समुद्र को मथा तो सबसे पहले हलाहल विष निकला, जिसे शिव जी ने पी लिया था। इस विष को भगवान ने गले में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। विष की वजह शिव जी के शरीर में गर्मी बहुत बढ़ गई थी। इस गर्मी को शांत करने के लिए शिवलिंग पर ठंडे जल की धारा चढ़ाने की परंपरा है।
*सावन से शुरू होगा उत्सवों का दौर*
सावन से कार्तिक माह के 117 दिनों में 75 दिन ऐसे रहेंगे, जब बड़े व्रत और पर्व मनाए जाएंगे। सावन में हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी और रक्षाबंधन बड़े पर्व रहेंगे। भाद्रपद में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरियाली अमावस्या, हरतालिका तीज, 10 दिन गणेश उत्सव और भाद्रपद पूर्णिमा आदि रहेंगे। आश्विन माह में सबसे ज्यादा 26 दिन उत्सव मनाए जाएंगे। इनमें 15 दिन श्राद्ध पक्ष, 9 दिन नवरात्रि, दशहरा और शरद पूर्णिमा शामिल हैं। कार्तिक मास में करवा चौथ, पुष्य नक्षत्र, 5 दिन दीपावली, देवउठनी एकादशी और देव दीपावली मनाए जाएंगे। इन पर्वों के साथ ही चारों महीनों में एकादशियां, चतुर्थी, प्रदोष और अन्य खास तिथियां भी रहेंगी। इस तरह सावन से कार्तिक मास तक 75 दिनों में बड़े व्रत और पर्व आएंगे।
*सावन में व्रत-उपवास करना सेहत के लिए जरूरी क्यों है?*
सावन में हमारे पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए खान-पान का खास ध्यान रखें। इस महीने में व्रत-उपवास जरूर करें। सप्ताह में कम से कम एक दिन सोमवार को अन्न छोड़कर सिर्फ फलाहार करें। आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता के सूत्रस्थानम अध्याय में व्रत-उपवास के बारे में लिखा है। आयुर्वेद में रोगों का उपचार 6 तरह से होता है। लंघन, बृंहण, रूक्षण, स्नेहन, स्वेदन और स्तंभन। इन 6 विधियों में लंघन बहुत खास है। लंघन के भी दस प्रकार हैं। इनमें 10 प्रकारों में उपवास भी है। उपवास से पेट संबंधी कई बीमारियां दूर हो जाती हैं।
*सावन में योग-प्राणायम से सेहत रहती है अच्छी*
सावन में मौसम ऐसा रहता है कि हमारा मन उन चीजों की ओर ज्यादा ललचाता है जो हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं है। तली हुई चीजें, मसालेदार खाना बारिश में ज्यादा अच्छा लगता है, लेकिन अभी ये खाना आसानी से पचता नहीं है और हम इनकी वजह से बीमार हो सकते है। इसलिए ऐसी चीजें ही खाएं, जिन्हें आसानी से पचाया जा सकता है। बाहर का खाना बिल्कुल न खाएं। साफ-सफाई का खास ध्यान रखें।
*पाचन को मजबूत बनाने के लिए ये टिप्स अपनाएं*
सावन में रोज सुबह 12 आसन वाला सूर्य नमस्कार जरूर करें।
पवनमुक्तासन, पादहस्त आसन, सेतुबंधासन, धनुरासन, भुजंगासन करें।
कपालभाति प्राणायाम करें।
*वर्षा ऋतु का सेहत पर क्या असर होता है?*
सावन और बारिश में कई दिनों तक सूर्य की रोशनी हम तक नहीं पहुंच पाती है। धूप की कमी, बादल से बरसने वाला पानी और जमीन से निकलने वाली वाष्प की वजह से वात रोग यानी गैस से संबंधित बीमारियां अधिक होती हैं। इन दिनों में हमारा पाचन भी कमजोर रहता है।
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