Hariyana bulletin से बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि विवाह व्यक्तिगत भोग का विषय नहीं है। इसका जुड़ाव परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण से भी है। वंश वृद्धि के लिए भी विवाह जरूरी है।
परांडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के विषय पर चल रही सुनवाई को लेकर संपूर्ण हिंदू समाज चिंतित है। उन्होंने कहा कि समलैंगिकता को भारतीय समाज सामाजिक व्यभिचार, कुसंस्कार और चारित्रिक पतन के रूप में देखता है। अगर व्यक्तिगत रूप से किसी को इसकी छूट दे भी दी जाए तो इसके आधार पर विवाह की मान्यता देने से परिवार और समाज का ढांचा बिगड़ने का खतरा है, जो किसी के हित में नहीं होगा।
उन्होंने आगे कहा कि व्यक्तिगत भोग-विलास की लालसा को नौतिक मूल्यों, परंपरा और संस्कृति पर हावी होने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। हजारों वर्षों से विवाह एक प्रतिष्ठित विषय रहा है। इससे परिवार बनते हैं, लोगों के जीवन का निर्माण होता है। उपभोग का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसी कल्पना को आधार मानते हुए जो विषय चल रहे हैं, इससे भारत को काफी नुकसान हो सकता है।
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