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Tuesday, September 1, 2020

गुड न्यूज:एचएयू की फल छेदक मशीन को मिला पेटेंट, मुरब्बा बनाने के लिए

गुड न्यूज:एचएयू की फल छेदक मशीन को मिला पेटेंट, मुरब्बा बनाने के लिए एक घंटे में 80 किलो आंवले में किए जा सकेंगे छेद, समय-धन बचेगा

एचएयू के वैज्ञानिकों ने एक और उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2009 में अविष्कार की गई फल छेदक मशीन काे अब भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय की ओर से पटेंट मिल गया है। मशीन की खासियत यह है कि एक घंटे में करीब 80 किलोग्राम आंवला में छेद किया जा सकेगा। एचएयू के कुलपति ने भी पेटेंट मिलने पर मशीन तैयार करने वाले वैज्ञानिकाें की सराहना की है।

विवि के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. आरके झोरड़ ने बताया कि इस मशीन का अविष्कार महाविद्यालय के प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर मुकेश गर्ग व छात्र दिनेश मलिक की अगुवाई में किया गया। उन्होंने बताया कि इस मशीन के लिए वर्ष 2009 में पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसके लिए अब भारत सरकार की ओर से इसका प्रमाण-पत्र मिल गया है।

उपलब्धि - एचएयू के लिए गौरव की बात, सीएम ने भी ट्वीट कर दी वैज्ञानिकों को बधाई

एचएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत अनुसार फलों में आंवला बहुत ही पौष्टिक फल है जिसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसमें प्रोटीन व कई खनिज मिश्रण जैसे कैल्सियम, फास्फोरस और लौह अयस्क पाया जाता है। औषधीय दवाई बनाने में इसका बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल होता है और पौष्टिक होने के कारण सालभर इसकी डिमांड रहती है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि केवल अक्टूबर से जनवरी के बीच में ही फल तैयार होने के कारण इसकी सालभर उपलब्धता नहीं हो पाती थी।

इसके अलावा सीजन में बाजार में भरमार होने से अधिक मुनाफा भी नहीं मिल पाता। सालभर उपलब्धता, अधिक मुनाफा व इसकी पौष्टिकता बरकरार रखना बहुत ही जरूरी था। इसके लिए आंवले का मुरब्बा ही सबसे बेहतर तरीका है। आंवले का मुरब्बा बनाने से पहले उसमें छेद करनी की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना छेद आंवले का मुरब्बा नहीं बना सकते।

सुविधा: कम समय में होगा ज्यादा काम

विभागाध्यक्ष प्रो. रवि गुप्ता के अनुसार पहले सारा काम हाथों से होता था, जिसमें प्रत्येक फल को सुइयों द्वारा छेद किया जाता था, जिसमें अधिक समय लगता था और मजदूरों की संख्या ज्यादा होने के कारण शुद्धता भी नहीं होती थी। काम करते समय मजदूरों के हाथों में सूई भी चुभ जाती थी।

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा अविष्कार की गई जिस मशीन का पेटेंट मिला है उसकी प्रतिघंटा 80 किलोग्राम तक फलों में छेद करने की क्षमता है। इस मशीन को बीस साल की अवधि के लिए पेटेंट मिला है। इस पर सीएम मनोहर लाल खट्टर ने भी ट्वीट कर बधाई दी है। प्रमाण पत्र मिलने पर प्रो. मुकेश गर्ग व छात्र दिनेश मलिक के प्रयास को भी सराहा है।

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