हाई कोर्ट ने सेलिब्रिटीज को दी नसीहत, सोशल मीडिया पर इन शब्दों से बनाएं दूरी, जानिए पूरा मामला
चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सेलिब्रिटीज को नसीहत दी है कि वह ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने में सावधानी बरतें, जिनकी गलत व्याख्या हो सकती है। हाई कोर्ट के जस्टिस अमोल रतन सिंह ने क्रिकेटर युवराज सिंह द्वारा इंटरनेट मीडिया पर चैट करते हुए अनुसूचित जाति के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर दर्ज एफआइआर को रद करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां की हैं।
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति और विशेष रूप से सेलेब्रिटी को किसी भी शब्द के उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए, जिसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह देखा जाना आवश्यक है कि 1989 का अधिनियम समाज के एक ऐसे वर्ग के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया, जिसे युगों से उत्पीड़ित माना जाता है।
स्वाभाविक रूप से उक्त अधिनियम के प्रावधानों के किसी भी उल्लंघन से निपटने के लिए कड़ाई से पेश आना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज के ऐसे वर्गों के प्रति भलाई की भावना पैदा हो, इसलिए प्रति प्रत्येक व्यक्ति और विशेष रूप से हस्तियों शब्दों के चयन को लेकर सावधान रहना चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान युवराज सिंह की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील पुनीत बाली ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मुकदमा एक जातिसूचक शब्द के प्रयोग पर दर्ज करवाया है, जबकि उस शब्द का आशय नशे का सेवन करने वाले व्यक्ति से होता है। युवराज के वकील ने यह भी तर्क दिया था कि यह टिप्पणी संबंधित व्यक्ति (युजवेंद्र चहल) के संदर्भ में की गई थी। पिछले साल 20 अप्रैल को इंस्टाग्राम में युवराज और रोहित शर्मा की बात हो रही थी। बड़े ही हलके फुल्के और मजाकिया अंदाज में हो रही उस बातचीत में उन्होंने अन्य क्रिकेट खिलाड़ी यजुवेंद्र चहल और कुलदीप यादव को मित्रतापूर्वक ढंग से उस शब्द से संबोधित कर दिया था।
उनका किसी समुदाय विशेष की भावनाओं को आहत करने की कोई मंशा नहीं थी। उसके दोस्त युजवेंद्र चहल दलित समुदाय से नहीं थे। बावजूद इसके उन्होंने 5 जून को एक प्रेस बयान जारी कर इसके लिए माफी भी मांग ली थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया इस शब्द का अर्थ दो व्याख्याओं के अधीन है, अर्थात क्या इसका उपयोग किसी विशेष समुदाय के खिलाफ किया गया था।
याची के साथी युजवेंद्र चहल के लिए जो अनुसूचित जाति से संबंधित नहीं है। युवराज के वकील की तरफ से दलील दी गई कि 14 फरवरी को इसी मामले को लेकर हांसी के रजत कलसन ने हांसी पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज करवा दी । शिकायतकर्ता कई बार उससे संपर्क करने की कोशिश कर चुका है और उसे ब्लैकमेल करना चाहता था। वैसे भी शिकायतकर्ता इस शिकायत को दर्ज करवाने का अधिकार ही नहीं रखता है। एक तो वह खुद इस समुदाय से नहीं है, दूसरा वह खुद इस मामले में पीड़ित नहीं है।
इस पर शिकायतकर्ता के वकील अजुर्न श्योराण ने आरोपों से इन्कार किया कि युवराज को नहीं जानता है और इसलिए शिकायतकर्ता की ओर से पैसे की मांग करने के लिए उन्हें फोन करने का सवाल ही नहीं उठता। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने एफआइआर की जांच पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए सरकार को आदेश दिया कि वह जांच जारी रखे व चार सप्ताह के भीतर राजपत्रित अधिकारी द्वारा इस मामले की जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे। कोर्ट ने अगली सुनवाई तक एफआइआर पर युवराज के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई न करने का आदेश दिया है लेकिन यह जांच रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। इस मामले में अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी।
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