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Thursday, April 29, 2021

ये कैसा प्रोटोकॉल ! सीएम साहब अंदर तो कोरोना से तड़पते मरीज बाहर !

ये कैसा प्रोटोकॉल ! सीएम साहब अंदर तो कोरोना से तड़पते मरीज बाहर !

जींद  : दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर से बिलख रहा है ! पूरे देश भर में कहीं बेडो की व्यवस्था नहीं है, कहीं ऑक्सीजन नहीं है , तो कहीं करो ना से दम तोड़ चुके मरीजों के संस्कार करने के लिए भी जगह नहीं है ! इन परिस्थितियों को देखकर आप भी अंदाजा लगा चुके होंगे कि राष्ट्र के अंदर हालात कितने भयावह हो चुके हैं ! दम तोड़ती सांसे, बिलखते परिजन, टूटते सपने और बेबस व लाचारी ही आजकल समाचार पत्रों में टेलीविजन चैनलों की हेड लाइन बन रही है ! महामारी के इस दौर में जिस से भी बात की जाए उसका सिर्फ यही कहना होता है की प्लीज भगवान जी बचा लो ! यह शब्द एक इंसान की जिंदगी में तब ही पनपते हैं जब वह अपनी बेबसी की सारी हदें लांघ जाता है !


ऐसे समय में भी क्या राजनेताओं द्वारा अपना प्रोटोकॉल मेंटेन करना और अपनी चकाचौंध को बरकरार रखने के लिए बाहर मरीजों को तड़पते छोड़ देना कहां तक सही है ! क्या हमारे राजनेताओं को उनकी प्रजा के आंसुओं की नाम मात्र फिक्र भी नहीं है ! अपने रुतबे को बरकरार रखने के लिए लाखों सांसों के साथ खेलना किस हद तक सही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ! दरअसल हम बात कर रहे हैं हरियाणा के माननीय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के आजकल चल रहे प्रदेश के अस्पतालों के दौरों के बारे मे ! दरअसल हरियाणा के मुख्यमंत्री प्रदेश के विभिन्न शहरों में जाकर विभिन्न अस्पतालों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं !
अंदर आने की गुहार लगाते रहे परिजन

एक मुखिया के तौर पर वह सही है की मौके पर जाकर हालातों का जायजा लें लेकिन यह कितना सही है कि उनके प्रोटोकॉल के कारण अस्पताल के बाहर करोना से तड़पते मरीज अंदर आने की गुहार लगाते रहे और मुख्यमंत्री साहब खुद अंदर दरवाजे बंद करके निरीक्षण करते रहे ! ताजा मामला जींद से है जहां आज मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अचानक से बिना किसी सूचना के अचानक जींद पहुंचे ! एक बार तो मुख्यमंत्री का यह कार्यक्रम देख कर अधिकारी भी हड़बड़ाहट में रह गए लेकिन फिर जैसे तैसे मामले को संभाला गया ! वैसे तो मुख्यमंत्री का यह औचक निरीक्षण मुखिया के तौर पर एक तरीके से सही है लेकिन अगर उनका प्रोटोकोल बीच में नहीं आए तो ! जींद पहुंचते ही मुख्यमंत्री ने जिला नागरिक अस्पताल का निरीक्षण करने का दौरा निकाला और वे सीधे नागरिक अस्पताल चले गए ! इसी समय मुख्यमंत्री का सारा दौरा विवादों में आ गया !
जैसे ही मुख्यमंत्री ने अस्पताल का दौरा करना शुरू किया तो उच्च अधिकारियों ने प्रोटोकॉल की दुहाई देकर दरवाजे बंद कर दिए ! मुख्यमंत्री मनोहर लाल के दौरे के कारण करीब पौने घंटे तक बेबस और लाचार मरीज बाहर तड़पते रहे जिनमें बुजुर्ग, युवा व महिलाएं भी शामिल थी ! इस दौरान मरीजों के साथ आए परिजन दरवाजे को खुलवाने के लिए दरवाजा खटखटाते रहे लेकिन फिर आड़े आ गया प्रोटोकॉल ! क्या प्रोटोकॉल आम जनता की सांसो से ज्यादा जरूरी है !
बेबसी में निकल पड़े मरीज की माँ के आँसू
इस दौरान कई मरीज अंदर जाने को बेबस दिखे तो कई मरीज वार्ड में दाखिल होने को ! हालात ऐसे थे कि एक मरीज के साथ आई उसकी मां की बेबसी में आंसू निकल आए लेकिन प्रोटोकॉल के आगे उनकी एक न चली ! यह सारा वाकया मीडिया के कैमरे में भी कैद हो गया ! एक मरीज के परिजनों का कहना था कि उन्हें सुबह 8:00 बजे के बाद पानी भी नसीब नहीं हुआ है और वह प्यास से तड़प रहे हैं ! व्यवस्थाओं का निरीक्षण करने आए मुख्यमंत्री पीड़ितों को और ज्यादा दर्द दे गए ! इस दौरान पीड़ित मरीजों के परिजनों ने के मुखिया जी से व्यवस्था को लेकर शिकायत भी की लेकिन होना क्या था ! मुख्यमंत्री अपनी फॉर्मेलिटी निभा कर वापस चले गए ! अस्पताल के बाहर व्हील चेयर पर मरीजों का तड़पना किस हद तक राहत देने वाला है !
इस दौरान परिजनों ने मुख्यमंत्री जी को शिकायत भी की कि आपके दौरे के कारण हमें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ! जब परिजनों का संयम जवाब दे गया तो उन्होंने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया और आखिर में पुलिस को दरवाजा खोलना पड़ा ! अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश के मुखिया को महामारी के इस दौर में भी अपने प्रोटोकोल को कायम रखना कितना सही है ! क्या उनको आम जनता की सांसों की जरा सी भी परवाह नहीं है ? क्या एक मुखिया को मानवता के नाते ही सही इस गंभीर संकट में अपने प्रोटोकॉल को नहीं छोड़ देना चाहिए? क्या यह वीआईपी कल्चर इसी तरह लोगों की सांसो के साथ खिलवाड़ करता रहेगा ? क्या इन सवालों पर मुख्यमंत्री जी ध्यान देंगे या फिर यह महज एक सवाल ही बनकर रह जाएंगे ?

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