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Tuesday, April 5, 2022

सरकार के साथ आए भूपेंद्र ह‍ुड‍्डा, बोले - हरियाणा के लिए जहां कहोगे, वहां लड़ने को तैयार, अभय चौटाला भी उतरे समर्थन में

सरकार के साथ आए भूपेंद्र ह‍ुड‍्डा, बोले - हरियाणा के लिए जहां कहोगे, वहां लड़ने को तैयार, अभय चौटाला भी उतरे समर्थन में 

 चंडीगढ़ :  पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा समेत कांग्रेस विधायक दल ने पंजाब सरकार द्वारा पास प्रस्ताव के विरुद्ध हरियाणा विधानसभा में लाए हरियाणा सरकार के प्रस्ताव का समर्थन किया। हुड्डा ने सरकार को भरोसा दिलाया कि प्रदेशहित के मुद्दे पर विपक्ष राजनीति से ऊपर उठकर सरकार के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि सरकार जहां कहेगी, उस मोर्चे पर हरियाणा के हक में लड़ने के लिए विपक्ष तैयार है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलना चाहिए और एक सुर में हरियाणा के अधिकारों की वकालत करनी चाहिए। भूपेंद्र हुड्डा ने सदन में चर्चा के दौरान कहा कि पंजाब सरकार द्वारा विधानसभा में पास किया गया प्रस्ताव एक राजनीतिक जुमला है। लेकिन हरियाणा के सभी राजनीतिक दलों को ऐसी प्रदेश विरोधी गतिविधियों के विरूद्ध एकजुटता से खड़ा होना चाहिए। क्योंकि इससे पहले भी पंजाब की सरकारों द्वारा हरियाणा के हितों का अतिक्रमण करने की कोशिश होती रही है। 
 इतिहास के पन्ने पलटते हुए बताया कि अलग राज्य बनने के बाद से हरियाणा और पंजाब के बीच तीन मसलों पर विवाद चलता आ रहा है। पहला एसवाईएल का पानी, दूसरा हिंदी भाषी क्षेत्र और तीसरा राजधानी चंडीगढ़। उन्होंने कहा कि किस तरह पानी को लेकर अलग-अलग कमीशन और कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसले सुनाए। शाह कमीशन ने चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी बनाए रखने की सिफारिश की। साथ ही हिंदी भाषी क्षेत्रों को भी हरियाणा में मिलाने पर बरसों से बातचीत हो रही है। लेकिन हमारी प्राथमिकता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक हरियाणा को एसवाईएल का पानी मिले। साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के पक्ष में फैसला सुना चुकी है। सबसे पहले उसे अमलीजामा पहनाया जाना चाहिए। उसके बाद अन्य मसलों पर भी बातचीत होनी चाहिए। बातचीत में हरियाणा के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। पंजाब हमारा बड़ा भाई यानी एल्डर ब्रॉदर है लेकिन वह बिग ब्रॉदर बनने की कोशिश ना करे। हरियाणा के अधिकारों को बाईपास करके एकतरफा फैसलों के चलन से पंजाब सरकार को बचना चाहिए। 
Bhupendra Hooda came with the government, said - ready to fight for Haryana wherever you say, Abhay Chautala also came out in support
भूपेंद्र हुड्डा 
 भूपेंद्र हुड्डा ने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में हरियाणा की स्थाई सदस्यता खत्म करने का मसला भी आज सदन में उठाया। उन्होंने कहा कि भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में पहले सदस्य ( पावर ) पंजाब से और सदस्य ( सिंचाई ) हरियाणा से होते थे। लेकिन नए नियमों में यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। नए नियमों से हरियाणा के हित सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। हरियाणा सरकार को इसका भी विरोध करना चाहिए। साथ ही चंड़ीगढ़ प्रसाशक के तौर पर हरियाणा के राज्यपाल की भी नियुक्ति होनी चाहिए। राज्यपाल की नियुक्ति के लिए रोटेशन पॉलिसी लागू होनी चाहिए। हम शुरू से ही चंडीगढ़ के समर्थन में : अभय सिंह चौटाला पंजाब विधान सभा में चंडीगढ़ पर प्रस्ताव पास किए जाने के मुद्दे पर मंगलवार को हरियाणा विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया गया।
Bhupendra Hooda came with the government, said - ready to fight for Haryana wherever you say, Abhay Chautala also came out in support
अभय सिंह चौटाला
इस दौरान ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने सदन में कहा कि हम शुरू से ही चंडीगढ़ के समर्थन में हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा के पंजाब से अलग होने पर दोनों प्रदेशों की सीमाएं निर्धारित करने के लिए 23 अप्रैल 1966 को न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हिसार, महेन्द्रगढ़, गुडग़ांव, रोहतक, करनाल, नरवाना और जीन्द तहसीलें, खरड़ तथा चंडीगढ़ कैपिटल प्रोजेक्ट, नारायणगढ़, अम्बाला और जगाधरी क्षेत्र हरियाणा को दिए लेकिन यह फैसला लागू नहीं हो सका और चंडीगढ़ को हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी बना दिया गया। इसमें एसवाईएल पानी का मुद्दा भी था और इनेलो एकमात्र पार्टी है जिसने पूरे प्रदेश में आंदोलन चलाए और गंभीरता से लंबी लड़ाई लड़ी। चौधरी बंसीलाल ने मुख्यमंत्री रहते 19 दिसंबर 1991 में सदन में कहा था कि उनकी चौधरी देवी लाल या उनकी पार्टी से कोई मोहब्बत नहीं है लेकिन एसवाईएल पर सबसे ज्यादा कार्य चौधरी देवी लाल के समय 1987 के बाद की सरकार ने किया।चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्री रहते 2002 में एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा के हक में आया था लेकिन पंजाब में कांग्रेस की सरकार ने उस फैसले को नहीं माना और जितने भी अंतर्राज्यीय जल समझौते थे, उन्हें एक विधेयक पारित कर रद्द कर दिए। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब द्वारा पारित उक्त विधेयक को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया।

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