राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कांग्रेस मुख्यालय में शनिवार को प्रेसवार्ता करते हुए कहा, ये खिलाड़ी पीएम मोदी से न्याय की गुहार लगा रहे थे। जब ये मेडल लाए तो पीएम ने इनका सम्मान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। अब वे मौन धारण किए हुए हैं। ये घोर अन्याय है...
जंतर-मंतर पर चल रहे पहलवानों के प्रदर्शन में अब 'पॉलिटिक्स' मिक्स होने लगी है। इसका अहसास कहीं न कहीं, धरने पर बैठे अंतरराष्ट्रीय पहलवानों को भी है। शनिवार को एकाएक कई घटनाक्रम हो गए। सुबह प्रियंका गांधी, पहलवानों से मिलने पहुंच गईं। कुछ देर बाद कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने भी मीडिया के सामने अपनी भड़ास निकाल दी। उन्होंने कह दिया कि मैं तो बहाना हूं, निशाना तो कोई और है। यौन उत्पीड़न के आरोपों को नकारते हुए बृजभूषण ने कहा, 'एक ही परिवार और एक ही अखाड़ा क्यों, देश के बाकी खिलाड़ी कहां हैं। उनके साथ यौन शोषण क्यों नहीं हो रहा। इसके बाद जब यह मामला 'राजनीति' के आसपास घूमने लगा, तो पहलवान साक्षी मलिक सामने आईं। उन्होंने कहा, हम खिलाड़ी हैं और हम किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करते हैं। यहां आकर जो भी हमारे धरने को भटकाने की कोशिश कर रहा है, उसका जिम्मेदार वह खुद होगा हम नहीं होंगे। इसके साथ ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा भी मैदान में कूद पड़े। उन्होंने कहा, ये तो राजनीतिक मुद्दा ही नहीं है। इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।
पहले था परहेज, इस बार मांगा साथ
तीन माह पहले जब इन्हीं पहलवानों ने जंतर-मंतर पर धरना दिया था, तो उन्होंने राजनीतिक पार्टियों को अपने मंच से दूर रखा था। उस समय सीपीआई नेता वृंदा करात ने जब पहलवानों से बात करनी चाही तो उन्हें मना कर दिया गया। पहलवानों ने अपने हाथ में माइक पकड़कर स्पष्ट तौर से कह दिया कि यहां कोई राजनीति न करे। वे कृपया पहलवानों के मंच से दूर रहें। इसके बाद कोई भी राजनीतिक दल, वहां नहीं पहुंचा। अब तीन माह बाद स्थिति उलट हो चली है। बजरंग पुनिया, हाथ जोड़कर राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और खाप पंचायतों से अपील करते रहे कि वे जंतर-मंतर पर आकर हमारा साथ दें। सोशल मीडिया पर भी पूरे जोरशोर के साथ यह अपील की गई।
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