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Sunday, May 7, 2023

*शाइस्ता को बचा रही ‘बुर्के वाली गैंग’, गांव में नो-एंट्री:लोग बोले, ‘अतीक से कोई रिश्ता नहीं, जो किया भुगतना पड़ेगा’*

*शाइस्ता को बचा रही ‘बुर्के वाली गैंग’, गांव में नो-एंट्री:लोग बोले, ‘अतीक से कोई रिश्ता नहीं, जो किया भुगतना पड़ेगा’*
यूपी के माफिया अतीक अहमद की हत्या को 21 दिन गुजर गए हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि उसकी बीवी शाइस्ता परवीन कहां है? यूपी पुलिस के हाथ खाली हैं। 25 अप्रैल को यूपी STF ने शाइस्ता को पकड़ने के लिए प्रयागराज के पास हटुआ में रेड की। मस्जिद से एक ऐलान हुआ और बुर्का पहनी औरतों की भीड़ ने पुलिस टीम को घेर लिया। पुलिस सूत्रों के मुताबिक शाइस्ता वहीं थी, लेकिन भीड़ का फायदा उठाकर फरार हो गई।
2 मई को दिल्ली पुलिस को एक फोन आया कि शाइस्ता बस में बैठकर हरियाणा-दिल्ली से सटे बवाना से मेरठ की तरफ जा रही है। पुलिस ने पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर घेराबंदी कर दी। कई बसों की तलाशी हुई, लेकिन शाइस्ता नहीं मिली।
इससे पहले अतीक के वकील रहे खान सौलत हनीफ ने शाइस्ता और प्रयागराज के कछार इलाके की लेडी डॉन मुंडी पासी का नाम लिया था। हनीफ ने बताया कि उमेश पाल के मर्डर से पहले शाइस्ता और मुंडी पासी मिले थे। आरोप लगते ही जमानत पर बाहर चल रही मुंडी पासी सामने आई और कहा- ‘शाइस्ता ने मुझे बहाने से मिलने बुलाया था, मैं उसे नहीं जानती।’
शाइस्ता के अलावा अतीक गैंग के गुड्डू मुस्लिम, अतीक का गनर एहतेशाम, गुड्डू मुस्लिम का सहयोगी आसिफ माली भी फरार हैं। अशरफ की बीवी जैनब और बहन आयशा नूरी भी फरार हैं। इनकी तलाश में यूपी STF पंजाब, बिहार, एमपी, बंगाल, ओडिशा, दिल्ली के अलावा प्रयागराज के आस-पास कई जगह छापेमारी कर चुकी है।
*50 हजार की इनामी शाइस्ता परवीन की कहानी ढूंढते हुए Hariyana bulletin उस गांव में पहुंचा, जहां वो पैदा हुई और उसकी परवरिश हुई*।

शाइस्ता यहां नहीं रहती है, यहां क्यों आए हो…
शाइस्ता की परवरिश प्रयागराज के आखिरी हिस्से में बसे दामूपुर गांव में हुई थी। प्रयागराज सिविल लाइंस से दामूपुर की दूरी करीब 10 किमी है। दामूपुर के रास्ते में अतीक का पुश्तैनी गांव कसारी मसारी भी पड़ता है। कसारी मसारी से दामूपुर 3 किमी दूर है।
हम गांव में घुसे, हाथ में माइक और कैमरा देखकर कुछ लड़कों ने हमें घेर लिया। वे गुस्से में थे, पूछने लगे- यहां क्यों आए हो? हमने कहा, ये अतीक की पत्नी शाइस्ता का गांव है न? इस सवाल पर एक युवक भड़क गया। कहने लगा- ‘यहां से निकल जाओ। शाइस्ता यहां नहीं रहती है।’ हमने कहा, गांव के प्रधान ने बुलाया है, उनसे मिलना है। ये सुनकर युवक शांत हुआ और हमें आगे जाने दिया।
गांव के अंदर जाने के दो तरफ से रास्ते हैं। एक रास्ते से जाने पर कुछ मकान और दुकानों के बाद एक मस्जिद है। मस्जिद के सामने चाय की दुकान है। वहीं हमें रोबीली मूंछों वाले एक शख्स मिले। उनका नाम सुल्तान है, वे दामूपुर के प्रधान हैं।
सुल्तान भी शाइस्ता का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं और मीडियावालों को उल्टा-सीधा बोलने लगते हैं। कहते हैं- ‘आप पहले मीडियावाले हो, जो गांव में दाखिल हो गए। यहां टीवी वालों का आना मना है। हम आपसे भी कैमरे पर बात नहीं करेंगे। न ही किसी गांव वाले का वीडियो और तस्वीर लेने देंगे।’
*गांव में शाइस्ता का 5 हजार स्क्वायर फीट का प्लॉट*
                                हमारे काफी समझाने के बाद सुल्तान हमें शाइस्ता का पुश्तैनी मकान देखने की इजाजत देते हैं, लेकिन साथ में अहमद नाम का एक आदमी भी भेज देते हैं। मस्जिद से करीब 100 मीटर दूर आगे जाने पर अहमद एक प्लॉट की तरफ इशारा करते हैं, कहते हैं- ये है शाइस्ता का प्लॉट, यहीं पहले मकान भी था।’ अहमद रुकता नहीं है, मुझे वहां पहुंचाकर चला जाता है।
दामूपुर गांव में इसी जगह शाइस्ता का घर हुआ करता था, अब सिर्फ कुछ दीवारें रह गई हैं। गांव के लोग यहां कचरा फेंकते हैं। 
दामूपुर गांव में इसी जगह शाइस्ता का घर हुआ करता था, अब सिर्फ कुछ दीवारें रह गई हैं। गांव के लोग यहां कचरा फेंकते हैं।
सामने गली में एक कोने पर 5 हजार स्क्वायर फीट का प्लॉट है। ये शायद पहले दीवारों से घिरा था, लेकिन अब उनका कुछ हिस्सा बचा है। प्लॉट के ठीक सामने दो मंजिला मकान बना है, हमें तस्वीरें लेते देख घर से एक बुजुर्ग गेट पर आ गए। हमने पूछा, यह प्लॉट किसका है? इतना सुनते ही गुस्सा हो गए। कहा- ‘जिसने आपको यहां भेजा है, क्या उसने आपको नहीं बताया।’ फिर गेट बंद कर लिया।
50 साल पहले चला गया था शाइस्ता का परिवार, कभी-कभी आते हैं
वहां से हम फिर वापस मस्जिद की तरफ आ गए। यहां गांव प्रधान सुल्तान फिर मिल जाते हैं। अब थोड़ा शांत थे। हमने शाइस्ता पर बात करनी चाही तो बोले- ‘शाइस्ता के बारे में कैमरे पर कोई नहीं बोलेगा। शाइस्ता के परिवार के साथ जो हो रहा है, उसका इस गांव से कोई कनेक्शन नहीं है।’
सुल्तान आगे कहते हैं, ‘गांव के लोग शांति से जीना चाहते हैं। मेरे घर में बीते 45 साल से प्रधानी है। शाइस्ता के पिता मो. हारून यूपी पुलिस में सिपाही थे। उनकी इधर-उधर पोस्टिंग रहती थी। परिवार यहीं रहता था। शाइस्ता के जन्म के कुछ साल बाद पूरा परिवार यहां से चकिया शिफ्ट हो गया था। जो प्लॉट आपने देखा, वहां उनका बड़ा मकान था, खेती भी थी।’
‘शाइस्ता के कुछ रिश्तेदार भी यहां रहते थे, लेकिन ज्यादातर अब प्रयागराज में शिफ्ट हो गए हैं। गांव में अब भी परिवार की काफी इज्जत है। कभी-कभार हारून साहब और उनकी बेगम शादी-ब्याह में आते हैं, छह-सात महीने पहले भी आए थे। पहले शाइस्ता का आना-जाना होता था। एक-दो बार अतीक के साथ भी आई थीं।’
*प्रयागराज के चकिया में शाइस्ता के पिता का घर। गांव छोड़ने के बाद उन्होंने यही घर बनाया था*। 

शाइस्ता या अतीक से गांव का कोई नाता नहीं, जो किया है, भुगतना होगा
सुल्तान के साथ अहमद और शमीम भी बैठे थे। हमने सवाल किया कि अतीक या शाइस्ता के परिवार के साथ जो हो रहा है, उस पर क्या सोचते हैं। शमीम कहते हैं, ‘अतीक भाई से इस गांव का कोई रिश्ता नहीं है। हम भी कभी काम के सिलसिले में उनके यहां जाते थे। बाकी क्या हो रहा है, यह सभी देख रहे हैं। अब जो किया है, वह तो उन्हें और उनके परिवार को भुगतना ही पड़ेगा। बाकी सरकार को तो जानते ही हैं। सरकार से कौन लड़ पाया है। तो फिर अतीक की क्या बिसात है।’
अहमद शाइस्ता के पिता मो. हारून का जिक्र छेड़ते हुए कहते हैं, ‘सुना है कि वह भी फरार हो गए हैं। शाइस्ता के बाद उनकी तीन-चार औलादें और हैं। एक भाई पहले से जेल में है, एक गायब है। हो सकता है कि 80-85 साल के हारून भी बेगम के साथ किसी रिश्तेदार के यहां चले गए हों।’
*शहर वाला घर खुला छोड़ परिवार फरार, अतीक की डायरी मिली*
                            शाइस्ता के गांव से निकलकर हम 4 किमी दूर अतीक के घर चकिया पहुंचे। घर के सामने ही गली में चार-पांच मकान छोड़कर शाइस्ता के पिता मो. हारून का घर है। गेट पर लगी नेम प्लेट पर लिखा है ‘मो. हारून, पूर्व उप्र पुलिस’। दो मंजिला भव्य मकान के काले गेट पर ताला नहीं है।
शाइस्ता के पिता मोहम्मद हारुन का घर अभी खाली है। गेट पर ताला नहीं है, लेकिन दरवाजे खुले हैं। अतीक की हत्या के बाद से ही परिवार के लोग कहीं चले गए हैं। 
शाइस्ता के पिता मोहम्मद हारुन का घर अभी खाली है। गेट पर ताला नहीं है, लेकिन दरवाजे खुले हैं। अतीक की हत्या के बाद से ही परिवार के लोग कहीं चले गए हैं।
अंदर झांकने पर दिखा कि घर के अंदर दो दरवाजे हैं, दोनों खुले हैं। पड़ोसियों से बात की, तो पता चला कि अतीक की हत्या के बाद से ही परिवार कहीं चला गया है। घर की हालत देखकर लगता है कि सभी बड़ी जल्दी में निकले हैं। बहरहाल, कैमरे पर कोई भी बोलने को तैयार नहीं हुआ। मो. हारून के घर के सामने बना एक आलीशान मकान जमींदोज दिखा। पता करने पर मालूम चला कि यह अतीक के किसी करीबी का घर था, जिसे पुलिस-प्रशासन ने ढहा दिया है।
*मोहम्मद हारुन के घर के सामने पड़ा घर का मलबा*. जो प्रशासन ने तोड़ दिया था।
मोहम्मद हारुन के घर के सामने पड़ा घर का मलबा, जो प्रशासन ने तोड़ दिया था।
शाइस्ता से शादी के 9 दिन बाद ही गिरफ्तार हो गया था अतीक
शाइस्ता 4 बहन और दो भाइयों में सबसे बड़ी है। शाइस्ता पिता के साथ प्रतापगढ़ पुलिस लाइन में लंबे समय तक रही। वो पुलिस के तौर-तरीके जानती है। पूर्व IPS लालजी शुक्ल कहते हैं, ‘अगस्त 1996 में अतीक की शादी हुई थी। उस समय मैं प्रयागराज में एसपी था। किसी मामले में मैंने शादी के 9 दिन बाद ही उसे गिरफ्तार किया था। शाइस्ता को तभी पता चल गया था कि उसकी जिंदगी अब ऐसे ही बीतने वाली है।’
लालजी शुक्ल आगे कहते हैं, ‘जब 2005 में राजूपाल हत्याकांड हुआ, तो अतीक-अशरफ चर्चा में आए। अतीक जेल गया था। तब शाइस्ता ने ही अतीक का काम संभाला था। इसके बाद 2018 में अतीक ने जेल से चुनाव लड़ने का ऐलान किया, तो शाइस्ता ने चुनाव का जिम्मा अपने बेटों के साथ संभाला। इससे साबित होता है कि शाइस्ता अतीक के गैंग में एक्टिव थी।’
शाइस्ता थी अतीक के गैंग की लीडर, उमेश की हत्या के दो दिन बाद हुई फरार
अतीक गैंग और शाइस्ता को करीब से समझने वाले सीनियर जर्नलिस्ट स्नेह मधुर बताते हैं, ‘अतीक ने ही शाइस्ता को राजनीति में उतारा और उसके बहाने बाजार में लगा अपना रुपया निकालने की कोशिश की।’
‘उमेश की हत्या से अतीक सभी को मैसेज देना चाहता था कि भले ही वो जेल में है, लेकिन उसके पैसे हड़पने वालों को छोड़ेगा नहीं। शाइस्ता कई बार उमेश को मारने वाले शूटरों साबिर, अरमान या फिर गुड्‌डू मुस्लिम के साथ नजर आती रही है। पुलिस सूत्रों ने भी पुष्टि की है कि अतीक के बाद शाइस्ता ही गैंग को लीड कर रही थी। ऐसे में उसे सिर्फ हाउस वाइफ समझना भूल ही होगी।’
सीनियर जर्नलिस्ट स्नेह मधुर कहते हैं, ‘शाइस्ता फरार है, ये साबित करता है कि उसे उमेश की हत्या के बारे में सब पता था। राजूपाल की हत्या के समय अतीक जेल में था, अशरफ फरार हुआ था। वो प्रयागराज की सड़कों पर दिख जाता, लेकिन पुलिस उसे फरार बताती थी। शाइस्ता के मामले में भी ऐसा ही लग रहा है।
पूर्व IPS लाल जी शुक्ल कहते हैं, ‘शाइस्ता परवीन का भी वही हश्र होना है, जो सभी अपराधियों का होता है। शाइस्ता हो सकता है सरेंडर कर दे या तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी या फिर उसका भी एनकाउंटर हो जाएगा। वह ज्यादा दिनों तक पुलिस की पकड़ से दूर नहीं रह पाएगी।’

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