सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठा रहे हैं श्मशान घाटों में जलने वाले शव
बहादुरगढ़: बीते एक पखवाड़े में कोविड ने तेजी से मरीजों की सांसों को तोड़ा है। बिगड़े हालात में मरीजों का इलाज पहले ही मुश्किल था, लेकिन देहांत होने के बाद श्मशान भूमि में सम्मान के साथ दाह संस्कार भी मुश्किल भरा साबित होने लगा है। कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार बीते एक पखवाड़े में जिले में 115 से अधिक अंतिम संस्कार हो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग के अनुसार बीते एक महीने में केवल 10 संक्रमितों की मौत ही अधिसूचित हुई है। कोरोना के म्यूटेशन में आए बदलाव ने झज्जर जिले के लाइफ ग्राफ को डिस्टर्ब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मौतों के बढ़ते ग्राफ ने श्मशान घाटों में हाहाकार मचा दिया है। कोविड प्रोटोकाल से शहर के श्मशान घाटों पर शवों को जलाने की प्रक्रिया में भले ही जगह कम पड़े, लेकिन प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में अप्रैल महीने में सिर्फ 10 संक्रमितों की मौत ही रिकार्ड हुई है। सवाल उठता है कि कोविड संक्रमितों के दाह संस्कार के लिए अलग से स्वास्थ्य विभाग की कोई व्यवस्था नहीं थी। कोरोना की धधकती आग ने श्मशान गृह में तांडव मचा रखा है।
बस अड्डे के निकट स्थित रामबाग श्मशान घाट में इन दिनों प्रतिदिन 10 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। हालात ये है कि एक चिता की राख ठंडी नहीं होती, दूसरी अर्थी आ जाती है। इससे इस कदर दशहत व्याप्त है कि अपनी परंपराओं की डोर कमजोर हो रही है। अंतिम संस्कार के बाद लोग फूल (अस्थियां) चुनने तक नहीं आ रहे हैं। कोरोना के भय के चलते दोबारा कोई श्मशान घाट में आना नहीं चाहता है। जगह कम पड़ते देख बहादुरगढ़ के रामबाग शमशान घाट में 6 नए अस्थाई कुंड बनाए जा रहे हैं।
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